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नवतत्त्व.
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है वह गर्भजस्त्रि पुरुष नपुंसक तीनों प्रकार के होते है ओर जो समुत्सम होते है वह एक नपुंसक ही होते है।
(२) स्थलचरके च्यार भेद है यथा-एकखुरा दोखुरा गंडीपदा सन्हपदा जिस्मे एक खुरोका अनेक भेद है अश्व खर खचर इत्यादि दो खुरोक अनेक भेद है गौ भैस ऊंट बकरी रोज इत्यादि-गंडीपदाके भेद गज हस्ति गेंडा गोलड इत्यादि सन्ह पदके भेद सिंह-व्यात्र नाहार केशरीसिंह वन्दर मञ्जार इत्यादि इनोंके दो भेद है गर्भज और समुत्सम ।
(३) खेचरके च्यार भेद है यथा. रोमपक्खी चर्मपक्खी समुगपक्खी. वीततपक्खी-जिस्मे रोमपक्खी-ढंक पक्खी कंकपक्खी, वयासपक्खी. हंसपक्खी, राजहंसः कालहंस, क्रौंचपक्खी, सारसपक्खी, घायल० रात्रीराजा, मयूर पारेवा तोता मैना चीडी कंमेडी इत्यादि चर्मपक्खी चमचेड विगुल भारंड समुद्रवयस इत्यादि समुगपक्खी जीस्की पाक्खों हमेशां जुडी हुइ रहते है वितित पक्खी जोस्की पाखों हमेशां खुली हुइ रहती है इनों के भी दो भेद है गर्भज समुत्सम पूर्ववत् ।
(४) उरपरीसर्प के च्यार भेद है अहिसर्प अजगरसर्प मोहरगसर्प, अलसीयो. जिस्मे अहिसर्पके दो भेद है एक फण करे दुसरा फण नही करे. फण करे जिस्के अनेक भेद है आसीविष सर्प दृष्टिविषसर्प त्वचाविषसर्प उप्रविषसर्प भोगविषसर्प लालविषसर्प उश्वासविषसर्प निश्वासविषसर्प कृष्णासर्प सु. पेदसर्प इत्यादि जो फण न करे उनोंका अनेक भेद है-दोषीगा गोणसा चीतल पेणा लेणा होणसर्प पेलगसर्प इत्यादि । अजगर एकही प्रकारका होते है । मोहरग नामका सर्प अढाइद्विपके बाहार होते है उनोंकी अवगाहना उत्कृष्ट १००० योजनकी होती है।