________________
नवतत्त्व.
(८३)
जानते देखते है. उनोंने ही फरमाया है कि सूक्ष्म नामकर्मके उदयसे उन जीवोंको सूक्ष्म शरीर मीला है वह जीव मारे हुवा नहीं मरते है, बाले हुवा नहीं बलते है, काटे हुवा नहीं कटते है अर्थात् अपने आयुष्य से ही जन्म-मरण करते है. उनोंका आयुष्य मात्र अंतरमुहुर्तका ही है जिस्में पूक्ष्म, पृथ्वी, अप, तेउ, वायुके अन्दर तो असंख्याते २ जीव है और सूक्ष्म वनस्पतिमें अनंते जीव है. इन पांचोंके पर्याप्ता अपर्याप्ता मीलानेसे दश भेद होते है।
दुसरे बादर एकेन्द्रियके पांच भेद है यथा-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय. वायुकाय, वनस्पतिकाय. जिस्में पृथ्वीकायके दो भेद है. (१) मृदुल ( कोमल ) (२) कठन. जिस्में कोमल पृथ्वीकायके सात भेद है. काली मट्टी, नीली मट्टी, लाल मड़ी, पीली मट्टी, सुपेद मट्टी, पाणीके नीचे तली जमी हुइ मट्टी उसे 'पणग' कहते है. पांडु गोपीचन्दनादि।
(२ खरपृथ्वीके अनेक भेद है यथा-मट्टी खानकी, चीकणी मट्टी, छोटे कांकरा, वालुका रेती, पाषाण, शीला, लुण ( अनेक जातीका होते है ) धूलसे मीले हुवे धातु-लोहा, तांबा, तरुवा, सिसा, रुपा, सुवर्ण, बज्र, हरताल, हिंगलु, मणशील, परवाल, पारो, वनक, पवल, भोडल, अबरक, बज्ररत्न, मणिगोमेदरत्न,
* श्री सूत्रकृतांगमें कहा है कि अवापरी हुइ धूल च्यार अंगुल निचे सचित्त है. राजमार्गमें पांच अंगुल निचे सचित्त है. सरी ( गली ) में सात अंगुल निच. गृहभूमिमें दश अंगुल निचे.. मलमूत्रभूमिकामें पंदरा अंगुल निचे. चौपद जानवरों रहनेकी भूमिमे ३१ अंगुल निचे. चूल्हाके स्थान ३२ अंगुल निचे. कुम्भकारके निम्बाडांक ३६ अंगुल निचे. इंट केलवके पचाने के स्थान निचे १२० अंगुल निचे भूमिका सचित्त रहती है।