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नवतत्त्व.
(८१)
समय लोकालोकके भावोंको देख रहे है. सिद्धीका नाम लेनेसे नामनिक्षेपा, सिद्धोंकी प्रतिमा स्थापन करनेसे स्थापना नि क्षेपा, यहां पर रहे हुवे महात्मा सिद्ध होनेवाले है वह सिद्धोंका द्रव्य निक्षेपा है सिद्धभावमें वरत रहे है वह सिद्धोंका भाव निक्षेपा है उन सिद्धोंके मूल भेद दोय है (१) अनंतरसिद्ध (२) प. रम्परसिद्ध, जिस्मे अनंतर सिद्धों जोकि सिद्ध हुवेको प्रथमही समय बरत रहे है जिनोंके पंदरा भेद है (१) तिर्थसिद्धातीर्थ स्थापन होनेके बाद मुनिवरादि सिद्ध हुवे (२ ) अतीत्यसिद्धा-तीर्थ स्थापन होनेके पहेले मरूदेव्यादि सिद्ध हुवे (३) तीत्थयर सिद्धा-खुद तीर्थंकरसिद्ध हुवे (४) अतीत्थयरसिद्धा -तीर्थकरोंके सिवाय गणधरादि सिद्ध हुवे (५) सयंबोद्धे सिद्धाजातिस्मरणादि ज्ञानसे असोचा केवली आदि सिद्ध हुवे. (६) प्रतिबोद्विसिद्धा-करकंडु आदि प्रत्येक बुद्ध सिद्ध हुए (७) बुद्ध बोहीसिद्ध-तीर्थकर गणधरा मुनिवरों के प्रतिबोधसे सिद्ध हुवे. (८) इथिलिंगसिद्धा. द्रव्य से स्त्रिलिंग है परन्तु भाषसे वेदक्षय होने से अवेदि है वह ब्राह्मी सुन्दरी आदि (९ । पुरुषलिंगसिद्ध -पुर्ववत् अवेदि-पुंडरिकादि-(१० ) नपुंसकलिंगसिद्धे-पुर्ववत् अवेदि गाङ्गेयादि मुनि-(११) स्वलिंगीसिद्धे-स्वलिंग रजोहरण मुखवस्त्रिका संयुक्त मुनियोंकि मोक्ष (१२) अन्यलिंगसिद्धे-अन्यलिंग त्रीदंडीयादिके लिंगमें भावसम्यक्त्व चारित्र आनेसे मोक्ष नाना ( १३ ) गृहीलिंगीसिद्धे-गृहस्थ के लिंगमें सिद्ध होना मरूदेवी आदि-(१४) एक समय में एक सिद्ध (१५) एक समयमें अनेक (१०८) सिद्धोंका होना इन सबको अनंतर सिद्ध कहते है (२) दुसरे जो परम्पर सिद्ध होते है उनोंके अनेक 'भेद हे जेसे अप्रथम समयसिद्ध अर्थात् प्रथम समय वर्जके द्वि.