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(८२) शीघ्रबोध भाग २ जो. त्यादि संख्याते असंख्याते अनंते समय के सिद्धोंकों परस्पर सिद्ध कहते है इति.
(२) अब संसारी जीवोंके अनेक भेद बतलाते है जेसे संसारी जीवों के एक भेद याने संसारीजीव. दो भेद बस-स्थावर। तीन भेद खोवेद पुरुषवेद नपुंसकवेद। च्यार भेद. नारकी तीयच मनुष्य देवता । पांच भेद एकेन्द्रिय बेइन्द्रिय तेइन्द्रिय चोरिंन्द्रय पांचेन्द्रिय । छे भेद. पृथ्वीकाय अपकाय तेउकाय वायुकाय वनस्पतिकाय प्रसकाय । सात भेद नारको तीर्यच तीर्यचणी मनुष्य मनुष्यणी देवता देवी। आठ भेद च्यार गतिके पर्याप्ता अपर्याप्ता। नौभेद पांच स्थावर च्यार स । दश भेद पांच इन्द्रियों के पर्याप्ता अपर्याप्ता। इग्यारो भेद पांचेन्द्रियके पर्याप्ता अपर्याप्ता एवं १० और अनेन्द्रिय । बारहा भेद छे कायाके पर्याप्ता अपर्याप्ता। तेरहा भेद छे कायाके पर्याप्ता अपर्याप्ता ते. रहवा अकाया. जीवोंके चौदा भेद सूक्ष्मएकेन्द्रिय बादरएकेन्द्रिय बेइन्द्रिय तेन्द्रिय चोरिन्द्रय असंज्ञीपांचेन्द्रिय संज्ञीपांचेन्द्रिय एवं सातोंके पर्याप्ता अपर्याप्ता मीलाके चौदा भेद जीवोंके समजना।
विशेष ज्ञान होने के लिये संसारी जीवोंके ५६३ भेद बतलाते है जिस्मे संसारी जीवोंके मूल भेद पांच है यथा-(१) एकेन्द्रिय (२) बेइन्द्रिय ३) तेइन्द्रिय (४) चौरिन्द्रिय (५) पांचे. न्द्रिय । एकेन्द्रियके दो भेद है ( १ ) सूक्ष्म एकेन्द्रिय (२) बादर एकेन्द्रिय । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पांच प्रकारको है पृथ्वीकाय अपकाय तेउकाय वायुकाय वनस्पतिकाय यह पांचों सूक्ष्म स्थावर जीव, संपूर्ण लोकमें काजलकी कुंपलीके माफीक भरे हुवे हैं उन जीवों के शरीर इतना तो सूक्ष्म है कि छमस्योंकी दृष्टिगोचर नहीं होते है उनों को केवली भगवान अपने केवलज्ञान केवलदर्शनसे