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शीघ्रबोध भाग १ लो.
(४) चोथा आरा तीसरे आरेके माफीक होगा जीले प्र. यम तीजा भागमें कर्मभूमि रहेगे एक तीर्थकर एक चक्रवत्ति मोक्ष जावेंगे फीर दो-तीन भागमें युगल मनुष्य हो जायेंगे वहही कल्पवृक्ष उनोंकि आशा पुरण करेंगे सम्पूरण आरा दो कोडाकोडी सागरोपमका होगा।
(५) पांचवां आरा दुसरे आरेकं माफीक तीन कोडा-. कोडी सागरोपमका होगा उसमें युगल मनुष्यही होगा।
(७) छठा आरा पहेले आरेके माफीक च्यार कोडाकोडी सागरोपमका होगा उसमें युगल मनुष्यही होगे।
इन उत्सपिणी तथा अवसर्पिणीकाल मीलानेसे एक का. लचक्र होता है पसा अनंते कालचक्र हो गये कि यह जीव अज्ञानके मारे भवभ्रमन कर रहा है। पाठकगण ! इसपर खुब गहरी दृष्टिसे विचार करे कि इस जीवकि क्या क्या दशा हुई
और भविष्य में क्या दशा होंगी। वास्ते श्री परमेश्वर वीतराग के वचनोंको सम्यक प्रकारसे आराधन कर इस कालके मुंहते छुट चलीये सास्वते स्थानमें इति ।
सेवं भंते सेवं भंते-तमेव सञ्चम्