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( ७४) शीघबोध भाग १ लो.
श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के दिन संवर्तक नामका वायु चलनेसे पहलेपहर जैनधर्म, दुसरे पहर ३६३ पाखांडीयेका धर्म, तीजे पहर राजनीती; चोथे पहर बादर अग्निकाय विच्छेद होंगें उन समय गंगा सिंधु नदी, वैताव्यगिरि पर्वत ( सास्वतगिरी ) और लवण समुद्र कि खाडि इनके सिवाय सब पर्वत पाहाड जंगल जाडी वृक्षादि वनस्पति घर हाट नदी नालादि सर्व वस्तु नष्ट हो जायगी. उसपर सात सोत दिन सात प्रकारके मेघ वर्षगे वह अग्नि सोमल विष धूल खार आदि के पडने से सब भूमि एकदम दग्ध हो जायगी-हाहाकार मच जायंगे उन समय कुच्छ मनुष्य तीर्यच वर्चगे उनों को देवता उठाके गंगा सिन्धु नदीके किनारेपर ७२ बोल रहेंगे जिस्म ६३ बीलोंमें मनुष्य ६ बीलोंमें गजाश्व गौ/सादि भूमिचर पशु आदि ३ बीलोंमें ग्वेचर पक्षीकों रखदेंगे उनोंका शरीर वडाही भयंकर काला काबरा मांजरा लुला-लंगडा अनेक रोगप्राप्त कुरूपे मनुष्य होंगे जिनोंके मेंथुनकर्मकी अधिकाधिक इच्छा रहेंगे उनोंके लडके लडकीये बहुत होगी छ वर्षों की ओरतें गर्भ धारण करेंगी. वहभी कुतीयोंकि माफीक एक बखतमे ही बहुत बचा बचीयोंकों पैदा करेंगी महान् दुःखमय अपना जीवन पूर्ण करेंगे।
गंगा सिन्धु नदी मूलमें ६२॥ जोजनकी है परन्तु कालके प्रभाषसे क्रमशः पाणी सुकता सुकता उन समय गाडीके चीले जीतनी चोडी ओर गाडाका आक डुबे इतनी उडी रहेगी उन पाणी में बहुतसे मच्छ कच्छ जलचर जानवर रहेंगे।
उन समय सूर्य कि आताप बहुत होगी चन्द्रकि शीतलता बहुत होगी. जिनके मारे वह मनुष्य उन बीलोसे नीकल नहीं सकेंगे. उन मनुष्योंके उदर पुरणाके लिये उन नदीयोंमे कच्छ मरछ होगा उनीको श्याम सुबह बीलोंसे निकलके जलचर जीवों