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(१०) शीघ्रबोध भाग १ लो. शक्ति हो तो कविता करके शासनकी प्रभावना करे (८) ब्रह्मचर्यादि कोई बडा व्रत लेना हो तो प्रगट बहुतसे आदमियोंके बीच में ले। इसीसे लोगोंको शासन पर श्रद्धा और व्रत लेनेकी रुची बढती है अथवा दुर्बळ स्वधर्मी भाइयोंकी सहायता करनी यह भी प्रभावना है परन्तु आजकल चौमासेमें अभक्ष वस्तुओंकी प्र. भावना या लड्डु आदि बांटते है दीर्घदृष्टिसे विचारीये इस बांटने से शासनको क्या प्रभावना होती है ? और कितना लाभ है इस को बुद्धिमान स्वयं विचार कर सके है अगर प्रभावनासे आपका सच्चा प्रेम हो तो छोटे छोटे तत्वज्ञानमय ट्रेक्टकि प्रभावना करिये तांके आपके भाइयोंको आत्मज्ञानकि प्राप्ती हो।
(९) आगार छे हैं-सम्यक्त्व के अंदर छे आगार है (१) राजाका आगार (२) देवताका. (३) म्यातका (१) माता पिता गुरुजनोंका (५) बलवंतकाल (६) दुष्कालमें सुखसे आजीविका न चलती हो, इन छे आगारोंसे सम्यक्त्वमें अनुचित कार्य भी करना पडे तो सम्यक्त्व दुषित नहीं होता है।
(१०) जयणा छे प्रकारकी-१) आलाप-स्वधर्मी भाईयोंसे एक बार बोलना (२) सलाप-स्वाधर्मी भाईयोसे वार २ बोलना (३) मुनिको दान देना और स्वधर्मी वात्सल्य करना (४) प्रति. दिन वार २ करना (५) गुणीजनोंका गुण प्रगट करना (६) और बन्दन, नमस्कार, बहुमान करना।
(११) स्थान छे हैं- १) धर्मरुपी नगर और सम्यक्त्व रुपी दरवाजा (२) धर्मरुप वृक्ष और सम्यक्त्वरूपी जड (३) धर्मरुपी प्रासाद और सम्यक्त्वरूपी नीव (४) धर्मरुपी भोजन और सम्यक्त्वरूपी थाल ५) धर्मरुपी माल और सम्यकपरूपी दुकान (६) धर्मरुपी रत्न और सम्यक्षरुपी तिरी.