________________
पतीस बोल.
(११) (१२) भावना छ हैं-(१) जीव चैतन्य लक्षणयुक्त असंख्यात प्रदेशी निष्कलंक अमूर्ती है, (२) अनादि काल से जीव और कमौका संयोग है। जैसे दूधमें घृत, तिलमें तेल, धूलमें धातु, पुष्पमें सुगन्ध, चन्द्रकान्ती में अमृत सी माफिक अनादि संयोग है (३) जीव सुख दुःखका कर्ता है और भोक्ता है। निश्चय नयसे कर्मका कर्ता कर्म है और व्यवहार नयसे जीव है. (४, जीव, द्रव्य, गुण पर्याय, प्राण और गुण स्थानक सहित है. (५' भव्य जीवको मोक्ष है. (६) ज्ञान, दर्शन और चारित्र मोक्षका उपाय है॥ति॥ इस माकडेको कंठस्थ करके विचार करो कि यह ६७ बोल व्यवहार सम्यक्त्व है इनमेंसे मेरेमें कितने है और फिर आगेके लिये पढनेकी कोशीस करो और पुरुषार्थ द्वारा उनको प्राप्त करों॥ कल्याणमस्तु ॥
सेव भंते सेवं भंते तमेव सचम्
थोकडा नम्बर ३
( पैंतीस बोल) (१) पहेले बोले गति च्यार-नरकगति, तीर्यचगति, मनुष्यगति और देवगति.
(२) जाति पांच-एकेन्द्रिय, बेइंद्रिय, तेन्द्रिय, चोरिद्रय और पंचेन्द्रिय. . (३) काया ले-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायु: काय, वनस्पतिकाय, और उसकाय ।