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શૈક
अविराधि श्रावक विराध श्रावक
असंज्ञी तीर्यच
शीघ्रबोध भाग १ लो.
कन्दमूल खानेवाले तापस हांसी ठठा करनेवाले मुनि ( कदर्पीया ) परिव्राजक सन्यासी तापस आचार्यादिका अवगुण बोलनेवाले किल्बिषीया मुनि संज्ञी तीर्यच
आजीविया साधु गोशाला के मतका
यंत्र मंत्र करनेवाले अभोगी
साधु स्वलींगी दर्शन ववन्नगा
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हैं । इति.
सौधर्मकल्प
भुवनपति
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सेवं भंते सेवं भंते तमेव सम्
अच्युतकल्प जोतीषीमें
व्यंतरदेवों में
जोतीषीमें
सौधर्मकल्प
थोकडा नम्बर १३
ब्रह्मदेवलोक
लांतक
चौदवां बोल में भव्य जीव है पहले बोलमें भव्याभव्य दोनों
आठवा देवलोक
अच्युतकल्प
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नौ ग्रैवेयक
सूत्र श्री ज्ञाताजी अध्ययन ८ वां ( तीर्थंकर नाम बन्धके २० कारण )
( १ ) श्री अरिहंत भगवान्के गुण स्तवनादि करनेसे | ( २ ) श्री सिद्ध भगवान् के गुण स्तवनादि करने से |