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राजी पत्र पुष्प फलादिकि लक्ष्मी से अपनी छटा दीखा रही थी.. दश प्रकार के कल्पवृक्ष अनेक विभागोमें अपनि उदारता मशहूर कर रहे थे भूमिका वर्ण बडा ही सुन्दर मनोहर था स्थान स्थान वापी कुवे पुष्करणी वापी अच्छा पथ पाणी से भरी हुइ लेहरो कर रही थी. भूमिका रस मानो कालपी मीसरी माफीक मधुर
और स्वादिष्ट था. भूमिकी गन्ध चोतर्फ से सुगन्ध ही सुगन्ध दे रही थी. भूमिका स्पर्श बडा ही सुकुमाल मक्खनकि माफीक था एक वारीस होनेपर दश हजार वर्ष तक उनकी सरसाइ बनो रहती थी.
हे गौतम उन समयके मनुष्य युगल कहलाते थे कारण उन समय उन मनुष्यों के जीवन में एक ही युगल पैदा होते थे उनोंके मातापिता ४९ दिन उनोंका संरक्षण करते थे फीर वह ही युगल गृहवास कर लेते थे. वास्ते उन मनुष्योंकों 'युगलीये' मनुष्य कहा जाते थे वह बडे ही भद्रीक प्रकृतिवाले सरल स्वभावी विनयमय तो उनका जीवन ही थे उन मनुष्योंके प्रेमबन्धन या ममस्वभाव तो बीलकुल ही नही था. उन जमाने में उन मनुष्यों के लिये राजनीती और कानुन कायदावोंकि तो आवश्यक्ता ही नही थी कारण जहां ममत्व भाव होते है वहां राजसत्ताकि जरूरत होती है वह उन मनुष्योंके थी नही। वह मनुष्य पुन्यवान तो इतने थे कि जब कीसी पदार्थ भोग उपभोगके लिये जरूरत होती तो उनके पुन्योदय वह दशजातिके कल्पवृक्ष उसी बखत मनो. कामना पुरण कर देते थे। उन कल्पवृक्षोंके नाम और गुण इस माफीक था।
(.१) मत्तांगा-उच्च पदार्थोके मदिराके दातार. (२) भूयोगा-थाल कटोर गीलासादि वरतनोंके दातार.