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लघुदंडक. (३१) च और ३० अकर्मभूमी युगलीया नाण पावेदो क्रमसे तथा सन्नी मनुष्यमें ज्ञान पावे पांच सिद्धोमें केवल ज्ञान है.
(१६) अनाण-नारकी, देवतामें नवग्रंवयक तक, तिर्यच पंचेंद्री और सन्नी मनुष्यमे अनाण पावे तीन, पांच स्थावर तीन विकलेंद्रिय असन्नी तिर्यंच असन्नी मनुष्य और युगलीआमे अनाण पाये दो क्रमसे पांच अनुत्तर विमान और सिद्धोमें अनाण नहीं है।
(१७) जोग-नारकी और देवता जोग पावे ११ (४) मनके ( ४ ) वचनके, वैक्रिय १, वैक्रियका मिश्र १, कामणकोय योग, पृथ्वि, अप, तेड, वनस्पति, असन्नी मनुष्यमें योग पावे तीन (औदारिक १ औदारिककामिश्र १ ९ कार्मण काययोग १) वायुकायमें पांच पावे (पूर्ववत् ३ और वैक्रिय, वैक्रियका मिश्र ज्यादा) तीन विकलेंद्रिय, असन्नी तिर्यंचमें योग पावे चार औदारिक १, औदारिकका मिश्र १, कार्मणकाय योग १, ( और व्यवहार भाषा १ ) सन्नी तिर्यचमें योग पावे १३ ( आहारिक और आहारिकका मिश्र वर्जके ) सन्नी मनुज्यमे योग पावे पंदरा । युगलीआमे योग पावे अगीआरा (४ मनका ४ वचनका, औदारिक १, औदारिक मिश्र १, कार्मण काय योग १) सिद्धोंमे योग नहीं है . (१८) उपयोग-सर्व ठेकाणे दो दो पावे और जो उपयोग बारहा गीणना हो तो उपर लिखा पांच ज्ञान, तीन अज्ञान और चार दर्शनसे समझ लेना।
(१६) आहार-आहार व्याघात ( अलोक) आश्रयी पांच स्थावर स्यात् तीन दिशि, स्यात् चार दिशि, स्यात् पांच