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रूपी अरूपी १०६ बोल. (४५)
थोकडा नम्बर ८ सूत्रश्री भगवतीजी शतक १२ वा उद्देशा ५ वा.
___ (रूपी अरूपीके १०६ बोल.)
रूपी पदार्थ दो प्रकार के होते है एक अष्ट स्पर्शवाले जीनसे कीतनेक पदार्थोको चरम चक्षुवाले देख सके, दुसरे च्यार स्पर्शवाले रूपी जीनोंकों चरम चक्षुवाले देख नहीं सके. अतिशय ज्ञानी ही जाने। अरूपी-जीनोंकों केवलज्ञानी अपने केवलज्ञानद्वारा ही जाने-देखे.
(१) आठ स्पर्शवाले रूपोके संक्षिप्तसे १५ बोल है यथा-छे द्रव्यलेश्या (कृष्ण, निल, कापोत, तेजस, पद्म, शुक्ल) औदारीक शरीर, वैक्रियशरीर, आहारकशरीर, तेजसशरीर एवं १० तथा समुचय, घणोदधि, घणवायु, तणवायु, बादर पुद्गलोका स्कन्ध और कायाका योग एवं १५ बोलमें वर्णादि २० बोल पावे । ३००
(२) च्यार स्पर्शवाले रूपीके ३० बोल है. अठारा पाप, आट कर्म, मन योग, वचन योग, सूक्ष्मपुद्गलोंका स्कन्ध, और कारमणशरीर एवं ३० बोल में वर्णादि १६ बोल पावे । ४८० बोल.
(३) अरूपीके ६१ बोल है. अठारा पापका त्याग करना, बारहा उपयोग, कृष्णादि छे भावलेश्या, च्यार संज्ञा ( आहार भय मैथुन० परिग्रह०) च्यार मतिज्ञानके भांगा (उग्गह ईहां आपाय० धारणा) च्यार वुद्धि (उत्पातिकी, विनयकी, कर्मकी, पारि. णामिकी ) तीन दृष्टि ( सम्यकष्टि, मिथ्याष्टि, मिश्रदृष्टि ) पांच द्रव्य "धर्मास्ति, अधर्मास्ति, आकाशास्ति, जीवास्ति, और कालद्रव्य " पांच प्रकारसे जीवकी शक्ति “ उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषार्थ." एवं ६१ बोल अरूपोके है । इति.
। सेवं भंते सेवं भंते तमेव सञ्चम् ॥