________________
(१६)
शीघ्रबोध भाग १ लो.
कुमार, विद्युत्कुमार, अमिकुमार, द्विपकुमार, दिशाकुमार, उद-- धिकुमार, वायुकुमार, स्तनीतकुमार एवं ११ दंडक हुवा. पृथ्वीकायका दंडक, अपकायका, तेउकायका, वायुकायका, वनस्पति. कायका, बेहन्द्रिकादंडक तेइन्द्रिका, चौरिंद्रिका, तिर्यचपंचेन्द्रि यका, मनुष्य का, व्यंतरदेवताका, ज्योतीषीदेवोंका और चौवीसंवा बैमानिकदेवतोंका दंडक है।
(१७) लेश्या छ-कृष्णलेश्या, निललेश्या, कापोतले. श्या, तेजसलेश्या, पालेश्या, शुक्ललेश्या.
(१८) दृष्टि तीन-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, मिश्रदृष्टि ।
(१६) ध्यान चार-आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान।
(२०) पट् द्रव्य के जान पनेके ३० भेद. यथा षट् द्र. व्यके नाम. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय और काल.
(१) धर्मास्तिकाय-पांच बोलोंसे जानी जाती है. जेसे द्रव्यसे धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है क्षेत्रसे संपूर्ण लोक परिमाण है. कालसे अनादिअन्त है. भावसे अरुपी है जिसमें वर्ण, गन्ध, रस स्पर्श कुच्छ भी नही है और गुणसे धर्मास्तिकायका चलन गुण हे जेसे जलके सहायतासे मच्छी चलती है इसी माफिक धर्मास्तिकायकि सहायतासे जीव और पुद्गल चलन क्रिया करते है.
(२) अधर्मास्तिकाय पांच बोलोसे जानी जाती है अन्यसे अधर्मा० एक द्रव्य है क्षेत्रसे संम्पूर्ण लोक परिमाण है. कालसे आदि अन्त रहीत है भावसे अरूपी है वर्ण गन्ध रस