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(२८) शीघ्रबोध भाग १ लो. - यह अवसर्पिणी कालकी अवगाहना है इससे उलटी उत्स । पिणीकी समझना । सिद्धोंके शरीरकी अवगाहना नहीं है परंतु आत्म प्रदेशने आकाश प्रदेशको अवगाहया (रोकाहै) इस अपेक्षा जघन्य १ हाथ ८ आंगुल, मध्यम ४ हाथ १६ आंगुल, उत्कृष्ट ३३३ धनुष्य ३२ आंगुल, इति.
(३) संघयण-नारकी और देवतामें संघयण नहीं है किंतु नारकीमें अशुभ पुद्गल और देवतामें शुभ पुद्गल संघयणपणे प्रणमते है. पांच स्थावर, तीन विकलेंद्रिय, असन्नी तिर्यच, असन्नी मनुष्यमें संघयण एक छेव? पावे. सन्नी मनुष्य ओर सन्नी तिर्यचमें छ संघयण पावे युगलीआमें एक वज्रऋषभनारायसंघयण और सिद्धोमें संघयण नहीं है. इति
(४) संठाण-[६] नारकी, पांच स्थावर तीन विकलेंद्रिय असन्नी तिथंच और असन्नी मनुष्यमें संठाण एक हुंडक पावे तथा देवता और युगलीआमें समचौरस संठाण पावे सन्नी तिर्यच और सन्नी मनुष्यमै छ संस्थान पावे. सिद्धोमें संस्थान नहीं है.
(५) कषाय-[४]-चोवीसों दंडकमें कषाय च्यारों पावे और सिद्ध अकाई है।
(६) संज्ञा [४]-चोधीसों दंडकमें संज्ञा च्यारों पावे सिद्धोंमें संज्ञा नहीं है
(७) लेश्या- पहली दुजी नारकीमें कापोत लेश्या। तीजीमें कापोत और नील ले० चोथीमें नील ले० पांचमीमें नील
और कृष्ण ले० छठीमें कृष्ण ले. सातमीमें महाकूष्ण ले० १० भुवनपति, व्यंतर पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, युगलीआमें लेश्या चार पावे कृष्ण, नील कापोत, तेजो ले० तेउकाय, वायुकाय,