________________
(२२)
शीघ्रबोध भाग १ लो. थोकडा नम्बर ४
७
..
'सूत्रश्री जीवाभिगम' से लघुदंडक बालबोध.
॥ गाथा ॥ सरीरोगाहणा संघयण संठाण सन्ना कसायाय लेसिदिय समुग्धाओ सन्नी वेदय पजति ॥१॥ दिठि दसण नाण अनाणे जोगुवोगअ तह किमाहारे
उववाय ठि समोइय चवण गइआगह चेव ॥ २॥ इन दो गाथावोंका अर्थ शास्त्रकारोंने खुब विस्तारसे कीया है परन्तु कंठस्थ करनेवाले विद्यार्थी भाइयोंके लिये हम यहाँ पर संक्षिप्तही लिखते है।
(१) शरीर प्रतिदिन नाश होता जाय-नयासे पुरांणा होनेका जीस्मै स्वभाव है जिन शरीरके पांच भेद है (१) औदारीक शरीर, हाड मांस रौद्र चरबी कर संयुक्त सडन पडन वि. ध्वंसन, धर्मवाला होनेपरभी एकापेक्षासे इन शरीरकों प्रधान माना गया है कारण मोक्ष होनेमे यहही शरीर मौख्य साधन कारण है (१) वैक्रय शरीर हाड मंस रहीत नाना प्रकारके नये नये रूप बनावे (३) आहारक शरीर चौदा पूर्वधारी लब्धि संपन्न, मुनियोंके होते है (४) तेजस शरीर आहारादिकी पाच. नक्रिया करनेवाला (५) कामण शरीर अष्ट कर्मोका खजाना तथा पचा हुआ आहारको स्थान स्थानपर पहुंचानेवाला।
(२) अवगाहना-शरीरकी लम्बाइ जिस्के दो भेद है एक