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लघुदंडक
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भवधारणो अवगाहना दुसरी उत्तर वैक्रिय, जो असली शरीरसे न्यूनाधिक बनाना ।
(३) संहनन - हाडकि मजबुतीसे ताकत शक्तिको संहनन कहते है जिसके छे भेद है बज्रऋषभनाराच, ऋषभनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच, किलका, और छेवटा संहनन ।
( ४ ) संस्थान - शरीर कि आकृति, जिसके छे भेद - समचतुरस्र, न्यग्रोध परिमंडल, सादीया, बांधना, कुब्ज, हुंडकसंस्थान. (५) संज्ञा - जीवोंकि इच्छा-जिसके च्यार भेद. आहारसंज्ञा भयसंज्ञा मैथुनसंज्ञा परिग्रहसंज्ञा.
(६) कषाय - जिनसे संसारकि वृद्धि होती है जिस्के च्यार मेद है क्रोध, मान, माया, लोभ.
(७) लेश्या - जीवोंके अध्यवसाय से शुभाशुभ पुद्गलॉकों ग्रहन करना जिसके छे भेद है कृष्ण० निल० कापोत० तेजस० पद्म० शुक्ललेश्या ।
(८) इन्द्रिय - जिनसे प्रत्यक्षज्ञान होता है जिसके पांच भेद. श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय ।
( ९ ) समुद्घात - समप्रदेशोंकि घातकर विषम बनाना जिसका सात भेद है वेदनि० कषाय० मरणांतिक वैक्रिय० ते नस० आहारक० केवली समुद्घात०
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(१०) संज्ञी - जिसके मनहो वह संझी. मन न हो वह असंज्ञी (११) वेद - वीर्यका विकार हो मैथुनकि अभिलाषा करना उसे वेद कहते है जिसके तीन भेद है श्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद ।
( १२ ) पर्याप्ती - जीष योनिमें उत्पन्न हों पुद्गलोंको ग्रहनकर भविष्य के लिये अलग अलग स्थान बनाते है जिसके भेद छे. आहार० शरीर० इन्द्रिय० श्वासोश्वास० भाषा० मनपर्याप्ती !