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मलग्रन्थागत विषय का परिचय
प्रथम खण्ड : जीवस्थान जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, प्रस्तुत षट्खण्डागम जीवस्थान, क्षुद्रकबन्ध, बन्धस्वामित्वविचय, वेदना, वर्गणा और महाबन्ध इन छह खण्डों में विभक्त है। उनमें जो प्रथम खण्ड जीवस्थान है उसमें ये आठ अनुयोगद्वार हैं --१. सत्प्ररूपणा, २. द्रव्यप्रमाणानुगम, ३. क्षेत्रानुगम, ४. स्पर्शनानुगम, ५. कालानुगम, ६. अन्तरानुगम, ७. भावानुगम और ८. अल्पबहुत्वानुगम । इनका यहाँ क्रम से विषयपरिचय कराया जा रहा है --
१. सत्प्ररूपणा
यह पीछे 'ग्रन्थनाम' शीर्षक में स्पष्ट किया जा चुका है कि मूल ग्रन्थ में कहीं कोई खण्डविभाग नहीं किया गया है। प्रकृत में जो छह खण्डों का विभाग किया गया है वह धवला टीका और इन्द्रनन्दि श्रुतावतार के आधार से किया गया है।
सर्वप्रथम यहाँ ‘णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं' आदि पंचनमस्कारात्मक मंगलगाथा के द्वारा-जिसे अनादि मूलमन्त्र माना जाता है—अदादि पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है । तत्पश्चात् दूसरे सूत्र के द्वारा चौदह जीवसमासों के मार्गणार्थ-चौदह गुणस्थानों के अन्वेषणार्थ ----चौदह मार्गणाओं को जान लेने योग्य कहा गया है।
जैसा कि धवला में स्पष्ट किया गया है इस सूत्र में उपर्युक्त 'जीवसमास' से यहाँ मिथ्यात्वादि चौदह गुणस्थान अभिप्रेत हैं।
सूत्र में जिन मार्गणास्थानों को ज्ञातव्य कहा गया है वे चौदह मार्गणास्थान कौन हैं, इसे आगे के सूत्र द्वारा स्पष्ट करते हुए उनके नामों का उल्लेख इस प्रकार किया गया है-गति, न्द्रिय, काय.योग, वेद, कषाय. ज्ञान. संयम, दर्शन. लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार (सूत्र ४)।
तत्पश्चात् पूर्वनिर्दिष्ट चौदह जीवसमासों की प्ररूपणा के निमित्तभूत उपर्युक्त सत्प्ररूपणादि आठ अनुयोग द्वारों को ज्ञातव्य कहा गया है (५-७) । इन भूमिका स्वरूप सात सूत्रों को सम्मिलित कर प्रकृत सत्प्ररूपणा अनुयोग द्वार में सब सूत्र १७७ हैं। ___'सत्प्ररूपणा' में सत् का अर्थ अस्तित्व और प्ररूपणा का अर्थ प्रज्ञापन है । इस प्रकार इस सत्प्ररूपणा अनुयोग के आश्रय से गति-इन्द्रियादि चौदह मार्गणाओं में जीवों के अस्तित्व का परिज्ञान कराया गया है। वह प्रथमतः ओघ, अर्थात् सामान्य या मार्गणा निरपेक्ष केवल गुणस्थानों के आधार से, और तत्पश्चात् आदेश से, अर्थात् गति-इन्द्रिय आदि मार्गणाओं की विशेषता के साथ कराया गया है। ओघ से जैसे-मिथ्यादृष्टि है, सासादन सम्यग्दृष्टि है,
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