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गाथासूत्रों में उपसंहार किया।
उसी आचार्यपरम्परा से आता हुआ महाकर्मप्रकृतिप्राभृत धरसेनाचार्य को प्राप्त हुआ। पर उन्होंने उसका स्वयं उपसंहार न करके उसका व्याख्यान भूतबलि और पुष्पदन्त के लिए किया।' आचार्य भूतबलि ने उसका उपसंहार कर छह खण्ड किये। __उन छह खण्डों में सबका ग्रन्थप्रमाण ज्ञात नहीं होता, धवला के अनुसार जीवस्थान १८००० पद प्रमाण' और खण्डग्रन्थ की अपेक्षा वेदना का प्रमाण १६००० पद रहा है।
। ये दोनों ग्रन्थ आचार्य परम्परा से आकर उन दोनों आचार्यों को गाथासूत्रों के रूप में या गद्यात्मक सूत्रों के रूप में प्राप्त हुए, यह ज्ञात नहीं होता। जिस किसी भी रूप में वे उन्हें प्राप्त हुए हों, पर सम्भवतः परम्परा से मौखिक रूप में ही वे उन्हें प्राप्त हुए होंगे।
२. षट्खण्डागम व मूलाचार
वट्टकेराचार्य (सम्भवतः ई० द्वितीय शताब्दी) विरचित 'मूलाचार' एक साध्वाचारविषयक महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें मुनियों के आचार की विस्तार से प्ररूपणा की गई है। वह इन बारह अधिकारों में विभक्त है-१ मूलगुणाधिकार, २. बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तव, ३. संक्षेपप्रत्याख्यानसंस्तरस्तव, ४. समाचार, ५. पंचाचार, ६. पिण्डशुद्धि, ७. षडावश्यक, ८. द्वादशानुप्रेक्षा, ६. अनगारभावना, १०. समयसार, ११. शीलगुणाधिकार और १२. पर्याप्ति अधिकार ।। __इसकी यह विशेषा रही है कि उन बारह अधिकारों में से विवक्षित अधिकार में जिन विषयों का विवेचन किया जानेवाला है उसकी सूचना उस अधिकार के प्रारम्भ में करके तदनुसार ही क्रम से उनकी प्ररूपणा वहाँ की गई है।
उक्त बारह अधिकारों में अन्तिम पर्याप्ति अधिकार है। प्रारम्भ में यहाँ कर्मचक्र से निर्मुक्त सिद्धों को नमस्कार करके आनुपूर्वी के अनुसार पर्याप्तिसंग्रहणियों के कथन की प्रतिज्ञा की गई है। तत्पश्चात् इस अधिकार में जिन विषयों का विवेचन किया जानेवाला है उनका निर्देश इस प्रकार कर दिया गया है—पर्याप्ति, देह, काय व इन्द्रियों का संस्थान, योनि, आयु, प्रमाण, योग, वेद, लेश्या, प्रवीचार, उपपाद, उद्वर्तन, स्थान, कुल, अल्पबहुत्व तथा प्रकृति, स्थिति, अनुभाग व प्रदेश रूप चार प्रकार का बन्ध ।
इन सब सैद्धान्तिक विषयों की प्ररूपणा यहाँ व्यवस्थित रूप में जिस क्रम व पद्धति से की गई है उसे देखते हए ऐसा प्रतीत होता है कि उसके रचयिता को उन विषयों का ज्ञान
१. पुणो कमेण वक्खाणंतेण आसाढमाससुक्कपक्खएक्कारसीए पुवण्हे गंथो समाणिदो ।
(धवला पु० १, ७०); तेण वि गिरिणयरचंदगुहाए भूदबलि-पुप्फदंताणं महाकम्मपहुडि
पाहुडं सयलं समप्पिदं । (पु० ६, पृ० १३३) २. तदो भूदबलिभडारएण सुदणंईपवाहवोच्छेदभीएण भवियलोगाणुग्गहट्ठ महाकम्मपयडि
पाहुडमुवसंहरिऊण छखंडाणि कयाणि ।-.-धवला पु०६, पृ० १३३ ३. पदं पडुच्च अट्ठारहपदसहस्सं । - धवला पु० १, पृ० ६० ४. अधवा खंडगंथं पडुच्च वेयणाए सोलसपदसहस्साणि । ताणि व जाणि दूण वत्तव्वाणि ।
-धवला पु० ६, पृ० १०६
१५० / षट्खण्डागम-परिशीलन
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