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वर्ष
मास
महावीरजिन के गर्म में आने के पूर्व शेष चतुर्थ काल महावीर की आयु (कु० ३०+छ० १२ + के० ३०)
महावीर के मुक्त होने पर शेष चतुर्थ काल
७२
2 .
-- ३
८
१५
. .
केवली काल उसमें दिव्यध्वनि ६६ दिन नहीं प्रवृत्त हुई
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- २६
२४
मुक्त होने पर शेष रहा चतुर्थ काल
दिव्यध्वनि से सहित केवलिकाल + २६६ २४ इतने चतुर्थ काल के शेष रहने पर तीर्थ की उत्पत्ति हुई
यहाँ शंका की गयी है कि केवलिकाल में से ६६ दिन (२ मास, ६ दिन) किस लिए कम किये जा रहे हैं । उत्तर में धवलाकार ने कहा है कि केवलज्ञान के उत्पन्न हो जाने पर भी उतने समय तक दिव्यध्वनि के प्रवृत्त न होने से तीर्थ की उत्पत्ति नहीं हुई । इतने काल तक दिव्यध्वनि क्यों नहीं प्रवृत्त हुई, यह पूछे जाने पर कहा गया है कि गणधर के उपलब्ध न होने से उतने काल तक दिव्यध्वनि प्रवृत्त नहीं हुई। इस पर पुनः यह पूछा गया है कि सौधर्म इन्द्र उसी समय गणधर को क्यों नहीं ले आया। उत्तर में कहा गया है कि काललब्धि के बिना वह उसके पूर्व लाने में असमर्थ रहा ।'
मतान्तर
यह भी स्पष्ट किया गया है कि अन्य कितने ही आचार्य महावीर जिनेन्द्र की आयु बहत्तर वर्ष में पांच दिन और आठ मास कम (७१ वर्ष, ३ मास, २५ दिन) बतलाते हैं। धवला में गर्भस्थकाल, कुमारकाल, छद्मस्थकाल और केवलिकाल का इस प्रकार भी प्ररूपण है । तदनुसार भगवान महावीर आषाढ शुक्ला.षष्ठी के दिन कुण्डलपुर नगर के अधिपति नाथवंशी राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशलादेवी के गर्भ में आये । वहाँ नौ मास आठ दिन रहकर चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन गर्भ से निष्क्रान्त हुए। पश्चात् अट्ठाईस वर्ष, सात मास और बारह दिन कुमारअवस्था में रहकर वे मगसिर कृष्णा दशमी के दिन दीक्षित हुए। अनन्तर बारह वर्ष, पाँच मास, पन्द्रह दिन छद्मस्थ अवस्था में रहे । पश्चात् उन्हें वैशाख शुक्ला दशमी के दिन भिका ग्राम के बाहर ऋजुकूला नदी के किनारे षष्ठोपवास के साथ आतापनयोग से शिलापट्ट पर स्थित रहते हुए अपराह्न में केवलज्ञान प्राप्त हुआ। अनन्तर केवलज्ञान के साथ उन तीस वर्ष, पाँच मास और बीस दिन रहकर वे कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए । समस्त
योग-...
१. धवला पु० ६, पृ० ११६-२१
षट्खण्डागम पर टीकाएँ / ४६३
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