Book Title: Shatkhandagama Parishilan
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 807
________________ क्र०सं० २७६ अवतरणवाक्यांश जवणालिया मसूरी - पुस्तक १ पृष्ठ २३६ २६७ अन्यत्र कहाँ उपलब्ध होते हैं मूला० १२-५० दशवै०६-१३ २७७ २७८ २७६ जस्संतिए धम्मवहं जस्सोदएण जीवो अणु जस्सोदएण जीवो सुहं ७ . १ पंचसं० १-८७; गो० जी० २०३ UUUUU ३६ १४ २६६ ३३४ ४५४ ८२ २८१ ४१७ १ ध्यानश० १०१ भ० आ० १०५ पंचसं० १-४३; गो० जी ११८ पंचसं० १-७६; गो० जी० २०२ ध्यानश० १०० १०२ १३६ जह कंचणमग्गिगयं जह गेण्हइ परियटें जहचियमोराण सिहा जह चिरसंचियमिंधण जह-जह सुदमोगाहिदि जह पुण्णापुण्णाई जह भारवहो पुरिसो जह रोगासयसमणं जह वा घणसंघाया जह सव्वसरीरगयं जं अण्णाणी कम्म जं च कामसुहं लोए जं थिरमज्झवसाणं जं सामण्णग्गहणं जं सामण्णंगहणं २८४ २८५ २८६ २८७ २८८ २८६ २६० २६१ २६२ २६३ ८२ ওও ८७ २८१ ५१ प्रव० सा० ३-३८; भ०आ० १०८ मूला० १२-१०३ ध्यानश०२ १०० १४६ पंचसं० १-१३८; गो०जी० ४८२ द्रव्यसं० ४३ पंचसं० १-६४; गो० जी० १५२ २६४ जाइ जरा-मरण-भया जाणइ कज्जमकज्जं २०४ २६५ २६६ २९७ २६८ जाणइ तिकालसहिए। जाणदि फस्सदि भुंजदि जातिरेव हि भावानां ३८६ ४६१ १४४ २३६ १७५ पंचसं० १-१५०; गो०जी० ५१५ पंचसं० १-११७; गो०जी० २६६ पंचसं०१-६६ मजा ६ २६६ ३०० ३०१ जादीसु होइ विज्जा जारिसओ परिणामो जावदिया वयणवहा ७७ १२ ८०,१६२ १८१ १३२ सन्मति १-४७; गो० क० ८६४ ३०२ ३०३ जाहि व जासु व जीवा १ जिणदेसयाइ लक्खण- १३ जिण-साहुगुणुक्कित्तण- पंचसं० १-५६; गो०जी० १४१ ध्यानश० ५२ ध्यानश०६८ ३०४ ७६ अवतरण-वाक्य | ७५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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