Book Title: Shatkhandagama Parishilan
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 812
________________ क्र०सं० पृष्ठ अन्यत्र कहाँ उपलब्ध होते हैं १६४ اس ४२६ ४३० ४३१ ध्यानश०६२ ८२ ४६० و " ४७५ ५७ अवतरणवाक्यांश पुस्तक देसे खओवसमिए देहविचित्तं पेच्छा दो दोरूवक्खेवं दोद्दोय तिण्णि तेऊ द्रव्यतः क्षेत्रतश्चव द्विसहस्रराजनाथो धणमठ्ठत्तरगुणिदे धदगारवपडिबद्धो धनुराकारश्छिन्नो धम्माघम्मागासा धम्माधम्मा लोया धर्मे धर्मेऽन्य एवार्थों धुवखंधसांतराणं नन्दा भद्रा जया रिक्ता नयोपनयकोन्तानां १५० 2" ४३३ ४३४ ४३५ ४३६ ४३७ ४३८ ४३६ ४४० ४४१ ४४२ ६२ १२६ : आ०मी० २२ ११८ ३१६ आ०मी० १०७ m २८ १८३ आ०मी० ५७ युक्त्यनु० ५० आ०मी०३७ १६ ४४६ ४४७ ४४८ ४४६ ४५० ४५१ ४५२ नवनागसहस्राणि न सामान्यात्मनोदेति नानात्मतामप्रजहत्तदेक नित्यत्वकान्तपक्षेऽपि १५ निमेषाणां सहस्राणि पक्खेवरासिगुणिदो ३ यच्चय-सामित्तविही पच्चाहरित्तु विसएहि १३ पच्छा पावाणयरे पढमक्खो अंतगओ ४६ भ०आ० १७०७ ४५३ मूला० ११-२३; गो०जी० ४० ४५४ ४५५ ४५६ पढमपुढवीए चदुरो पढमं पयडिपमाणं पढमो अरहंताणं १२५ ४८ ३१६ २६६ ४५ ११२ २०६ २०८ ३०० मूला० ११-२१ (पयडि= सील) ४५७ पढमो अबंधयाणं पणगादि दोहि जुदा ४५८ मूला० १२-७६ ७५८ / षदखण्डागम-परिशीसन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974