Book Title: Shatkhandagama Parishilan
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 969
________________ शुद्धि-पत्र पृष्ठ पंक्ति शुद्ध परागम द्वारा समस्त २७-२८ गाथा में बन्धक के ३० सत्यप्ररूपणा ३५ वेदना में संक्लेश-शुद्धि उसकी जघन्य जिस ज्ञानावरणीय mr 99Uwww VW MU ८३ अशुद्ध परमागम द्वारा समर्पित समस्त गाथाएँ बन्ध के सत्प्ररूपणा वेदनाएँ संक्लेश-विशुद्धि उसकी अजधन्य जिस प्रकार ज्ञानावरणीय पु० १३ यहाँ कर्मप्रकृति For mrU MU0 m x or पु०१० यहाँ भावप्रकृति ४ ० mode ___ ३७ xxx १३२ १४० १७१ १७२ १७७ १८१ २११ २२१ २३६ २४६ अनन्तरप्ररूपणा १५ अनुभागविषय व स्थान २६ जो आहारक ''वह अनाहारक स्वलाक्षण्य त० सूत्र ४ उत्तरोत्तर असंख्यात १२.१३ कायवर्गणा आकार उववाणं संगहणिगाओ २७ गणप्रत्ययिक अनगार पंचग्रहण देखकर के आदि एक समान प्रबद्ध अनेकार्थत्वात् धातूनां लपिः आकर्षणक्रियो ज्ञेयः । त० वा०५, २४,१३ अन्तरप्ररूपणा अनुभामविषयक स्थान जो अनाहारक । वह अनाहारक स्वालक्षण्य त० सार उत्तरोत्तर संख्यात कायमार्गणा अकार उववाएण संगहणिगाहाओ गणप्रतिपन्न अनगार पंचसंग्रह देकर के सादि एक समयप्रबद्ध rror r m Wom २४ ३३३ ३३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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