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६. प्रसंगप्राप्त विषय का विशदीकरण करते हुए उन्होंने व्याख्यात तत्त्व की पुष्टि प्राचीन आगम-ग्रन्थों के अवतरणों द्वारा की है। यह ऊपर दी गई अवतरण-वाक्यों की अनुक्रमणिका से सुस्पष्ट है।
७. धवलाकार के ही समय में मूल सूत्रों में कुछ पाठ-भेद हो चुका था, जिसे उन्होंने प्रसंग के प्राप्त होने पर स्पष्ट भी कर दिया है।
८. कछ सूत्रों के विषय में शंकाकार द्वारा पुनरुक्ति व निरर्थकता प्रादि दोषों को उदभावित किया गया है। उनका प्रतिषेध करते हुए आगमनिष्ठ वीरसेनाचार्य ने उनकी निर्दोषिता व प्रामाणिकता को पुष्ट किया है। .
६. प्रस्तुत टीका दुरूह संस्कृत का आश्रय न लेकर सार्वजनिक हित की दृष्टि से सरल व सुबोध प्राकृत-संस्कृतमिश्रित भाषा में रची गई है।
आद्योपान्त इस धवला टीका का परिशीलन करने से, जैसा कि उसकी प्रशस्ति में निर्देश किया गया है, आचार्य वीरसेन की सिद्धान्त-विषयक अगाध विद्वत्ता, व्याकरणवैदुष्य, गम्भीर गणितज्ञता, ज्योतिर्वित्त्व और तार्किकता प्रकट है।
७७० / षट्सण्डागम-परिशीलन
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