Book Title: Shatkhandagama Parishilan
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 815
________________ क्र०सं० अन्यत्र कहाँ प्राप्त होते हैं अवतरणवाक्यांश प्रमाण-नय-निक्षेपै- पुस्तक पृष्ठ ३ १७,१२६ २५६ भ०आ० मूला०टीका ५२६ उद्धृत Mov xxxwwx गो०जी० ६२८ भ०आ० २११ ५१८ ५१६ ५२० ५२१ ५२२ ५२३ ५२४ ५२५ ५२६ ५२७ ५२८ ५२६ ५३० ५३१ ५३२ ५३३ ५३४ ५३५ ५३६ पंचसं० १-१४१; गोजी० ४८६ गो०क० ४१६ प्रमितिर रनिशतं प्राणिनि च तीव्रदु:खा २५५ प्राय इत्युच्यते लोक फालिसलागब्भहिया बत्तीसमट्टदालं ३ बत्तीस सोलस चत्तारि बत्तीसं किर कवला बत्तीसं सोहम्मे २३५ बम्हे कप्पे बम्होत्तरे २३५ बम्हे य लांतवे वि य ७ ३२० बहिरर्थो बहुव्रीहिः बहुविह-बहुप्पयारा बहुव्रीह्यव्ययीभावो बंधे अधापवत्तो . १६ ४०६ बंधेण य संजोगो बंधेण होदि उदओ ३५६ वंधण होदि उदओ बंधोदएहि णियमा बंधोदय पुव्वं वा...... णियमेण बंधोदय पुव्वं वा..." ..'रोदये बंधो बंधविही पुण बारस णव छ त्तिण्णि ६ ३८१ बारस दस अट्ठेव य ३ १६७,२०१ २५० बारस पण दस पण दस १२ बारस य वेदणिज्जे ३४३ बारसविहं पुराणं ११२ २०६ बारससदकोडीओ बाहत्तरि वासाणि य १२२ बाहिरपाणेहि जहा १ २५६ बाहिरसूईवग्गो १६५ xr क.पा. १४४; ल०सा० ४४१ क०पा० १४३ क०पा० १४८ x m ५३७ . ५३८ . ५३६ ५४० - ५४१ ५४२ ५४३ ५४४ or Mare » २६६ ५४५ ५४६ ५४७ पंचसं० १-४५; गो०जी० १२६ अवतरण-वाक्य । ७६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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