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अवतरण-वाक्य
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यह पहले कहा जा चुका है कि धवलाकार के समक्ष विशाल साहित्य रहा है, जिसका उपयोग उन्होंने अध्ययन करके अपनी इस धवला टीका में किया है। उनके द्वारा इस टीका में कहीं ग्रन्थ के नामनिर्देशपूर्वक और कहीं ग्रन्थ का नामनिर्देश न करके 'उक्तं चं' आदि के रूप में भी यथाप्रसंग अनेक ग्रन्थों से प्रचुर गाथाएं व श्लोक आदि उद्धृत किये गये हैं। उपयोगी समझ यहाँ उनकी अनुक्रमणिका दी जा रही हैक०सं० अवतरणवाक्यांश पुस्तक पृष्ठ अन्यत्र कहाँ लपलब्ध होते हैं अकसायमवेदत्तं
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भ०आ० २१५७ अगुरुअलहु-उवघादं अगुरुलघु-परूवधादा अग्नि-जल-रुधिरदीपे
२५६ अच्छित्ता णवमासे
१२२ अच्छेदनस्य राशेः
१२४ अट्ठत्तीसद्धलवा
गो० जी० ५०५ अट्टविहकम्मविजुदा (वियडा) १ २०० गो० जी०६८ पंचसं० १.३१ अट्ठासी अहियारे सु
११२ अठेव धणुसहस्सा
१५८
२२६ अट्टेव सयसहस्साअट्ठा- ३ अट्ठव सयसहस्सा णव " ६७
२६० अडदाल सीदि बारस
१३२ १३ अड्ढस्स अणलसस्स य
गो० जी० ५७४ (टीका में उद्धृत) अणवज्जा कयकज्जा १५ अणियोगो च णियोगो
१५४ आव०नि० १२५
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१. ध्यान रहे कि इस अनुक्रमणिका में 'जाणह-जाणदि', 'अवगय-अवगद', एग-एक्क, आउव
आउग, कथं-कधं, जैसे भाषागत भेद का महत्त्व नहीं है।
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