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गर्भस्थकाल
कुमारकाल
छद्मस्थकाल केवलिकाल
वर्ष
१. आचारांग द्वि०श्रु० ( भावना चूलिका) पृ० ८७७-६८
२. धवला पु० ६, पृ० १२१-२६
४६४ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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मास
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समस्त आयु
तीर्थंकर महावीर के इस गर्भस्थकाल आदि का विवेचन आचारांग में भी प्रायः इसी प्रकार पाया जाता है जो प्रथम मत के अनुसार दिखाई देता है । तिथियाँ वे ही हैं । किन्तु वहाँ पृथक्पृथक् वर्ष, मास और दिनों का योग नहीं प्रकट किया है । समस्त आयु उनकी कितनी रही है इसे भी वहाँ स्पष्ट नहीं किया गया है ।"
दिन
धवला में जो भगवान् महावीर के उपर्युक्त गर्भादि कालों की प्ररूपणा की गयी है उसकी पुष्टि वहाँ पृथक्-पृथक् 'एत्थुवउज्जंतीओ गाहाओ' इस निर्देश के साथ कुछेक प्राचीन गाथाओं को उद्धृत करते हुए की गयी है ।
अन्त में वहाँ यह प्रश्न उपस्थित हुआ है कि इन दो उपदेशों में यहाँ यथार्थ कोन है । उत्तर में धवलाकार ने कहा है- "इस विषय में एलाचार्य का बच्चा उनका शिष्य मैं वीरसेनअपनी जीभ को नहीं चलाता हूँ, अर्थात् कुछ कह नहीं सकता हूँ ।" कारण यह है कि इस सम्बन्ध में कुछ उपदेश प्राप्त नहीं है । इसके अतिरिक्त उन दोनों में से किसी एक कुछ बाधा भी नहीं दिखती है । किन्तु दोनों में एक कोई यथार्थ होना चाहिए। उसका कथन जानकर ही निर्णय कर लेना चाहिए ।
में
ग्रन्थकर्ता गणधर
सर्वप्रथम यहाँ धवलाकार ने 'संपहि गंथकत्तार परूवणं कल्सामो' कहकर ग्रन्थकर्ता की प्ररूपणा करने की सूचना दी है ।
इस प्रसंग में यहाँ यह शंका की गयी है कि वचन के बिना अर्थ का व्याख्यान सम्भव नहीं, क्योंकि सूक्ष्म पदार्थों की प्ररूपणा संकेत से नहीं जा सकती है । अनक्षरात्मक ध्वनि द्वारा भी अर्थ का व्याख्यान घटित नहीं होता है, क्योंकि अनक्षरात्मक भाषा वाले तिर्यंचों को छोड़कर अन्य प्राणियों को उससे अर्थावबोध होना शक्य नहीं है । दूसरे दिव्यध्वनि अनक्षरात्मक ही हो, यह भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि वह अठारह भाषाओं और सात सौ कुभाषाओंस्वरूप है। इसलिए जो अर्थकर्ता है वही ग्रन्थ का प्ररूपक है । अतः ग्रन्थकर्ता की प्ररूपणा अलग से करना उचित नहीं ।
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इसके कारण को
पर जो अनन्त अर्थ
इसके समाधान में धवलाकार ने कहा है कि यह कोई दोष नहीं है स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा है कि जिसमें शब्दरचना तो संक्षिप्त होती है, के अवबोध के कारणभूत अनेक लिंगों से संयुक्त होता है उसका नाम बीजपद है। द्वादशांगात्मक अठारह भाषाओं और सात सौ कुभाषाओं रूप उन अनेक बीजपदों का जो प्ररूपक होता है वह
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