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धवला पु. १३ पृष्ठ गाथांक
ध्यानशतक गाथांक
संख्या
गायांश
२८
४८
४६
५८ उ० ६२पू. बहुलो= ६५ बहुणा
३०
३३
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णाणमयकण्णहारं कि बहुसो सव्वं चिय झाणोवरमे वि मुणी अंतोमुहुत्तमेत्तं अंतोमुहुत्तपरदो होंति कमविसुद्धाओ आगमउवदेसाणा जिग-साहुगुणक्कित्तण होंति सुहासव-संवर जह वा घणसंघाया अह खंति-मद्दबज्जव जह चिरसंचियमिंधण जह रोगासयसमणं अभयासंमोहविवेग चालिज्जइ बीहेइ व देहविचित्तं पेच्छइ ण कसायसमुत्थेहि सीयायवादिएहि हि
३७
१०२
६४
६५
३६ ४०
१०१ १०० ९० ध्या० 'अवहा
६७
"
६२
४४
१०४ पू०
कमव्यत्यय
धवला में पु०७३ पर गाथा ४८ के पाठ में कुछ क्रमभंग हुआ है तथा पाठ कुछ स्खलित भी हो गया है । यहाँ धवला के अन्तर्गत उस ४८वीं गाथा को देकर ध्यानशतक के अनुसार उसके स्थान में जैसा शुद्ध पाठ होना चाहिए, उसे स्पष्ट किया जाता है
णाणमयकण्णहारं वरचारित्तमयमहापोयं । संसार-सागरमणोरपारमसुहं विचितेज्जो ॥-धवला पृ० ७३, गा० ४८ अण्णाण-मारएरियसंजोग-विजोग-वीइसंताण । संसार-सागरमणोरपारमसुहं विचितेज्जा ।।५७ तस्स य संतरणसहं सम्मदसण-सुबंधणमणग्धं । णाणमयकण्णधारं चारित्तमयं महापोयं ॥५८ संवरकयनिच्छिदं तव-पवणाइद्धजइणतरवेगं । बेरग्गमग्गपडियं विसोइया-वीइनिक्लोभं ॥५६
१. विशेष जानकारी के लिए 'ध्यानशतक' की प्रस्तावना प० ५६-६२ में 'ध्यानशतक और
धवला का 'ध्यान प्रकरण' शीर्षक द्रष्टव्य है।
अनिर्दिष्ट नाम ग्रन्थ / ६३१
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