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'कृति' अनुयोगद्वार में बीजबुद्धि ऋद्धि की प्ररूपणा के प्रसंग में धवला में एक यह शंका उठाई गयी है कि यदि श्रुतज्ञानी का विषय 'अनन्त' संख्या है तो 'परिकर्म' में जो चतुर्दशपूर्वी का 'उत्कृष्ट संख्यात' विषय कहा गया है वह कैसे घटित होगा। इसके उत्तर में वहां कहा गया है कि वह उत्कृष्ट संख्यात को ही जानता है, ऐसा परिकम' में नियम निर्धारित नहीं किया गया है। ___ इस प्रसंग में शंकाकार ने कहा है कि श्रुतज्ञान समस्त पदार्थों को नहीं जानता है, क्योंकि ऐसा वचन है'
पण्णवणिज्जा भावा अणंतभागो दु अणभिलप्पाणं ।
पण्णवणिज्जाणं पुण अणंतभागो सुदणिबद्धो ।। इस प्रकार से शंका के रूप में उद्धृत यह गाथा विशेषावश्यक भाष्य में १४१ गाथासंख्या के रूप में उपलब्ध होती है । गो० जीवकाण्ड में भी वह गाथासंख्या ३३४ के रूप में उपलब्ध होती है, पर वहाँ उसे सम्भवतः धवला से ही लेकर ग्रन्थ का अंग बनाया गया है।
२९. सन्मतिसूत्र-- इसके विषय में पीछे (५० ५९६ पर) 'ग्रन्थोल्लेख' के प्रसंग में पर्याप्त विचार किया जा चुका है। प्रसंगवश धवला में नामनिर्देश के बिना भी उसकी जो गाथाएं उद्धृत की गयी हैं उनका भी उल्लेख वहां किया जा चुका है।
३०. सर्वार्थसिद्धि-जीवस्थान-कालानुगम में मिथ्यादृष्टियों के उत्कृष्ट कालप्रमाण के प्ररूपक सूत्र (१,५,४) में निर्दिष्ट अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल को स्पष्ट करते हुए धवला में पांच परिवर्तनों के स्वरूप को प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में वहाँ द्रव्यपरिवर्तन के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए यह कहा गया है कि सब जीवों ने अतीत काल में सब जीवराशि से अनन्तगुणे पुद्गलों के अनन्तवें भाग ही भोगकर छोड़ा है। कारण यह कि अभव्य जीवों से अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग से गुणित अतीत काल मात्र सब जीवराशि के समान भोग करके छोड़े गये पुद्गलों का प्रमाण पाया जाता है।
(१) इस पर वहाँ यह शंका की गयी है कि समस्त जीवों ने अतीत काल में उक्त प्रकार से सब पुद्गलों के अनन्तवें भाग को ही भोगकर छोड़ा है और शेष अनन्त बहुभाग अभुक्त रूप में विद्य
वद्यमान है तो ऐसी स्थिति के होने पर-"जीव ने एक-एक करके सब पुद्गलों को अनन्तवार भोगकर छोड़ा है।" इस सूत्र गाथा के साथ विरोध क्यों न होगा। इसके उत्तर में धवलाकार ने कहा है कि उक्त गाथासूत्र के साथ कुछ विरोध नहीं होगा, क्योंकि उस गाथासूत्र में प्रयुक्त 'सर्व' शब्द 'सबके एकदेश' रूप अर्थ में प्रवृत्त है, न कि 'सामस्त्य' रूप अर्थ में । जैसे 'सारा गांव जल गया' इत्यादि वाक्यों में 'सारा' शब्द का प्रयोग गांव आदि के एकदेश में देखा जाता है।
आगे इसी प्रसंग में क्रम से क्षेत्र, काल, भव और भाव-परिवर्तनों की प्ररूपणा करने की
१. देखिए धवला, पु० ६, पृ० ५६-५७ २. देखिए स०सि० २-१० (वहाँ 'एगे' स्थान में 'कमसो'; 'हु' के स्थान में 'य' और 'असई'
के स्थान में 'अच्छई' पाठ है। ३. देखिए धवला, पु० ४, पृ० ३२६ ६४२ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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