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इसे स्पष्ट करते हुए धवला में कहा गया है कि वह मति व श्रुतरूप साकार उपयोग से युक्त होता है । "
(२) आगे क० प्र० में उसे विशुद्ध लेश्या में वर्तमान कहा गया है ।
इसे स्पष्ट करते हुए धवला में कहा गया है कि वह छह लेश्याओं में से किसी एक लेश्या से युक्त होता हुआ अशुभ लेश्या की उत्तरोत्तर होने वाली हानि और शुभ लेश्या की उत्तरीतर होनेवाली वृद्धि से युक्त होता है । "
(३) क० प्र० में उसे अशुभ कर्मप्रकृतियों के चतुःस्थानक अनुभाग को द्विस्थानक और शुभ प्रकृतियों के द्विस्थानक अनुभाग को चतुःस्थानक करनेवाला कहा गया है ।
इस विषय में धवला में उल्लेख है कि वह पाँच ज्ञानावरणीयादि अप्रशस्त प्रकृतियों के अनुभाग की द्विस्थानिक और सातावेदनीयादि प्रशस्त प्रकृतियों के चतुःस्थानिक अनुभाग से सहित होता है । यहाँ उन प्रकृतियों का नामनिर्देश भी कर दिया गया है । 3
(४) क० प्र० में जो यह कहा गया है कि ध्रुव प्रकृतियों को बांधता हुआ वह प्रथम सम्यक्त्व के अभिमुख हुआ जीव अपने-अपने भव के योग्य प्रकृतियों को बाँधता है उसे स्पष्ट करते हुए टीकाकार मलयगिरि सूरि ने प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करनेवाला तिर्यंच व मनुष्य प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करता हुआ देवगति के योग्य जिन शुभ प्रकृतियों को बांधता है, उस सम्यक्त्व को उत्पन्न करने वाला देव व नारकी मनुष्य गति के योग्य जिन प्रकृतियों को बाँधता है, तथा उस सम्यक्त्व को उत्पन्न करनेवाला सातवीं पृथिवी का नारकी जिन कर्मप्रकृतियों को बाँधता है उन सबको पृथक्-पृथक् नाम निर्देशपूर्वक स्पष्ट कर दिया है । *
ष० ख० में मूल ग्रन्थकर्ता ने ही इस प्रसंग को स्पष्ट कर दिया है । यथा
जीवस्थान की उन नौ चूलिकाओं में तीसरी 'प्रथम महादण्डक' चूलिका है । इसमें प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करने वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच अथवा मनुष्य जिन कर्मप्र कृतियों को बाँधता है उनको नामनिर्देशपूर्वक स्पष्ट किया गया है।
चौथी 'द्वितीय महादण्डक' चूलिका में नामोल्लेखपूर्वक उन कर्मप्रकृतियों को स्पष्ट किया गया है जिन्हें सातवीं पृथिवी के नारकी को छोड़कर अन्य कोई नारकी या देव बाँधता है ।
पाँचवीं 'तृतीय महादण्डक' चूलिका में सातवीं पृथिवी का नारकी जिन कर्मप्रकृतियों को ता है उन्हें नामनिर्देश के साथ स्पष्ट किया गया है ।
(५) जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, ष०ख० में आगे यह कहा गया है कि प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करनेवाला अनादि मिथ्यादृष्टि अन्त मुहूर्त हटता है -- वह मिथ्यात्व का अन्तरकरण करता है ।
१. धवला पु० ६, पृ० २०७
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३. धवला पु० ६ पृ० २०८-६
४. क० प्र० मलय० वृत्ति, पृ० २५६-१ ५. सूत्र १,६-३, १-२ (पु० ६, पृ० १३३-३४) ६. सूत्र १,९-४,१-२ (५०६, पृ० १४०-४१ ) ७. सूत्र १, ६-५, १-२ ( पु० ६, पृ० १४२-४३)
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षट्खण्डागम की अन्य ग्रन्थों से तुलना / १८७
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