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छह द्रव्यप्रक्षिप्त राशि से अनन्तगुणी हीन मध्यम अनन्तानन्त प्रमाण मिथ्यादृष्टि जीवों की राशि होती है। यहाँ धवलाकार ने उस तीन बार वर्गित-संवर्गित राशि को स्पष्ट कर दिया है।'
'छह द्रव्यप्रक्षिप्त' राशि को स्पष्ट करते हुए धवला में कहा गया है कि उक्त तीन बार वगितसंवर्गित राशि में सिद्ध, निगोदजीव, वनस्पति, काल, पुदगल और समस्त लोकाकाश इन छह अनन्तप्रक्षेपों के मिलाने पर छह द्रव्यप्रक्षिप्त राशि होती है। ___ मिथ्यादृष्टि जीवों के द्रव्यप्रमाण की प्ररूपणा के पश्चात् कालप्रमाण की प्ररूपणा करते हुए सूत्र (१,२,३) में कहा गया है कि काल की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियों के द्वारा अपहृत नहीं होते हैं। इसकी व्याख्या के प्रसंग में काल से मिथ्यादृष्टि जीवों का प्रमाण कैसे जाना जाता है, यह पूछने पर धवला में कहा गया है कि अनन्तानन्त अवसपिणी-उत्सपिणियों के समयों को और मिथ्यादृष्टि जीवराशि को पृथक-पृथक स्थापित करके काल में से एक समय को और मिथ्यादृष्टि जीवराशि में से एक जीव को अपहृत करना चाहिए, इस क्रम से उत्तरोत्तर अपहृत करने पर सब समय तो अपहृत हो जाते हैं, किन्तु मिथ्यादृष्टि जीवराशि अपहत नहीं होती है। अभिप्राय यह है कि उक्त क्रम से उन अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सपिणियों के समयों के समाप्त हो जाने पर भी मिथ्यादृष्टि जीवों की राशि समाप्त नहीं होती है।
इसके विपरीत यहाँ शंका उठायी गयी है कि मिथ्यादृष्टि राशि समाप्त हो जाये किन्तु सब समय समाप्त नहीं हो सकते हैं, क्योंकि काल की महिमा प्रकट करनेवाला सूत्र देखा जाता है। इसके उत्तर में कहा है कि प्रकृत में अतीतकाल का ग्रहण होने से वह दोष सम्भव नहीं है। उदाहरण देते हुए धवलाकार ने कहा है कि जिस प्रकार लोक में प्रस्थ (माप विशेष) अनागत, वर्तमान और अतीत इन तीन भेदों में विभक्त है। उनमें अनिष्पन्न का नाम अनागत प्रस्थ, निष्पद्यमान का नाम वर्तमान प्रस्थ और निष्पन्न होकर व्यवहार के योग्य हए प्रस्थ का नाम अतीत प्रस्थ है। इनमें अतीत प्रस्थ से सब बीजों (धान्यकणों) को मापा जाता है। उसी प्रकार काल भी तीन प्रकार का है-अनागत, वर्तमान और अतीत । इनमें अतीत के समयों से सब जीवों का प्रमाण किया जाता है । अभिप्राय यह है कि भले ही अनागत के समय मिथ्यादृष्टि जीवराशि से अधिक हो, किन्तु अतीत के समय मिथ्यादृष्टि जीवराशि से अधिक सम्भव नहीं हैं। इसीलिए मिथ्यादृष्टि जीवराशि समाप्त नहीं होती है और अतीत के सब समय समाप्त हो जाते हैं।
यहाँ धवलाकार ने मिथ्यादृष्टि जीवराशि की अपेक्षा अतीतकाल के समयों की अल्पता सोलह पदवाले अल्पबहुत्व के आधार से की है।'
यहाँ धवला में यह शंका की गयी है कि कालप्रमाण की यह प्ररूपणा किस लिए की जा
१. धवला पु० ३, पृ० १०-२० २. वही, २६ ३. धम्माधम्मागासा तिण्णि वि तुल्लाणि होति थोवाणि ।
वड्ढीद् जीव-पोग्गल-कालागासा अणंतगुणा ।।-पु०३, पृ० २६ ४. धवला पु०३, पृ० २७-३० ५. वही, ३०-३२
३६० / षट्खण्डगम-परिशीलन
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