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षट्खण्डागम सूत्र ४, १, ६७ (पु० ६) में व्यवहृत लोक, वेद व समय तथा सूत्र ५. ५,५१ ( पु० १३ ) में लौकिकवाद और लोकोत्तरीयवाद इन शब्दों का निर्देश करके भी में उनका मूल कहीं कुछ स्पष्टीकरण नहीं किया गया है ।
६. अनुयोगद्वार (सूत्र ४९) में भारत - रामायण आदि जैसे कुछ ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है । मूल षट्खण्डागम में इनका उल्लेख कहीं नहीं है ।
१०. षट्खण्डागम की अपेक्षा अनुयोगद्वार में व्यवहार और संग्रह इन दो नयों के उल्लेख में क्रमव्यत्यय है । (अनु० सूत्र ६०६ व गाथा १३६-३९ )
११. अनुयोगद्वार में जो १४१ गाथाएँ हैं। वे प्रायः सभी संकलित की गई हैं, ग्रन्थकार के द्वारा रची गई नहीं दिखती। स्वयं ग्रन्थ में जहाँ-तहाँ किये गये संकेतों से भी यही प्रतीत होता है । यथा
एत्थ संग्रहणिगाहाओ (८६-८८) । ( सूत्र २८५ )
एत्थं पि य संगहणिगाहाओ ( ८६ - ६० ) । तं जहा - ( सूत्र २८६ )
एन्थं संगहणिगाहाओ (१०१ -२) भवंति । तं जहा - ( सूत्र ३५१ [५] )
एत्थ एतेसिं संगणिगाहाओ (१०१ २) भवंति । तं जहा - ( सूत्र ३८७ [ ५ ] ) एत्थ संग्रहणिगाहा (१२४) । (सूत्र ५३३)
माहि दोहि गाहाहि (१३३-३४) अणुगंतव्वे । तं जहा - ( सूत्र ६०४ )
निष्कर्ष
दोनों ग्रन्थों की इस स्थिति को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि अनुयोगद्वार सूत्र की रचना अथवा संकलना षट्खण्डागम के पश्चात् हुई है । कदाचित् अनुयोगद्वारकार के समक्ष षट्खण्डागम भी रहा हो ।
षट्खण्डागम की टीका धवला व अनुयोगद्वार
अनुयोगद्वार में आवश्यक के छह अध्ययनों में से प्रथम सामायिक अध्ययन के प्रसंग में इन चार अनुयोगद्वारों का निर्देश किया गया है—उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय । इनमें प्रथमतः उपक्रम के नाम उपक्रम, स्थापनाउपक्रम, द्रव्यउपक्रम, क्षेत्र उपक्रम, कालउपक्रम और भावउपक्रम इन छह भेदों का निर्देश करते हुए क्रम से उनकी प्ररूपणा ७६- ६१ सूत्रों में की गई है । तत्पश्चात् प्रकारान्तर से उसके आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार और समवतार इन छह भेदों का निर्देश करते हुए यथाक्रम से उनकी प्ररूपणा ε२- ५३३ सूत्रों में की गई है। इस प्रकार ग्रन्थ का बहुभाग इस उपक्रम की प्ररूपणा में गया है । ( पृ० ७२ - १६५ )
तत्पश्चात् निक्षेप की प्ररूपणा ५३४ ६०० सूत्रों में, अनुगम की प्ररूपणा ६०१ ५ सूत्रों में र नय की प्ररूपणा एक ही सूत्र (६०६) में की गई है ।
अनुयोगद्वार में की गई विवक्षित विषय की प्ररूपणा की धवला में प्ररूपित विषय के साथ कहाँ कितनी समानता है, यहाँ स्पष्ट किया जाता है
१. धवला में षट्खण्डागम के प्रथम खण्ड जीवस्थान के अवतार को दिखलाते हुए उसे
१. इनमें गाथा १२७-२८ मूलाचार (७,२४-२५) और आचा० नि० (७६६-६७) में भी मोड़े पाठभेद के साथ उपलब्ध होती हैं ।
२७० / षट्खण्डागम-परिशीलन
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