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प्रसंगप्राप्त कहा गया है । यह प्रकृतिसंक्रम आदि के भेद से चार प्रकार का है । इन चारों का धवला में यथाक्रम से स्वामित्व व एक जीव की अपेक्षा काल आदि अनेक अनुयोगद्वारों के आश्रय से विस्तारपूर्वक निरूपण है।
कर्मकाण्ड में तीसरे 'त्रिचूलिका अधिकार के अन्तर्गत पांच भागद्वारों की प्ररूपणा की गई है। उस पर धवलागत उपर्युक्त 'संक्रम' अनुयोगद्वार का बहुत कुछ प्रभाव रहा दिखता है। उसे स्पष्ट करने के लिए यहाँ एक दो उदाहरण दिये जाते हैं
(१) धवला के उस प्रसंग में पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण व समाचारणीय आदि ३६ प्रकृतियों का एकमात्र अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है, ऐसा कहा गया है। (पु० १६, पृ० ४१०) कर्मकाण्ड में इस अभिप्राय को संक्षेप में इस प्रकार प्रकट किया गया है
सुहमस्स बंधघादी सावं संजलणलोह-पंचिदी। तेज-बु-सम-वण्णचऊ अगुरुग-परधाव-उस्सासं ॥४१६॥
सत्थगवी तसदसयं णिमिणुगुवाले अधापवत्तोवु । ४२० पू० (२) धवला में मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृतियों के कौन-से संक्रम होते हैं, इसे स्पष्ट करते हुए यह कहा गया है
"मिच्छत्तस्स विज्झादसंकमो गुणसंकमो सव्वसंकमो चेदि तिण्णि संकमा ।Xxx वेदगसम्मत्तस्स चत्तारि संकमा-अधापवत्तसंकमो उव्वेल्लणसंकमो गुणसंकमो सव्वसंकमो चेदि ।"
__ -पु० १६, पृ० ४१५-१६ इस अभिप्राय को कर्मकाण्ड में निश्चित पद्धति के अनुसार संक्षेप में इस प्रकार प्रकट किया गया है
____xxx मिच्छत्ते। विज्माद-गुणे सव्वं सम्मे विज्मावपरिहीणा ॥४२३॥
धवला में प्रसंग के अनुसार बहुत-सी प्राचीन गाथाओं को उद्धृत किया गया है । ऐसी गाथाओं को कर्मकाण्ड में उसी रूप में या थोड़े-से परिवर्तन के साथ आत्मसात् कर लिया गया है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं
धवला
कर्मकाण्ड गाथांश
पृष्ठ
गाथा १. आउअभागो थोवो
५१२ १६२ २. उगुदाल तीस सत्त य
४१०
४१८ ३. उदये संकम उदये
२३६
२७६ ४. उव्वेलण विज्झादो
४०८-8
१२७ ५. एयक्खेतोगाढं
२७७
१८५ ४३६
२६५
४४०
2 dav
४०६
३५
४४
२८
६. णलया बाहू य तहा ७. दस अट्ठारस दसयं
२९
७६२
षट्खण्डागम की अन्य ग्रन्थों से तुलना / ३३५
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