________________
अभाव; ( ६ ) योग औदारिक मिश्र, वैक्रियिक मिश्र, आहारक मिश्र और कार्मण इन चार के बिना शेष ग्यारह व अयोग; (१०) वेद तीन, अपगत वेद भी; (११) कषाय चार, अकषाय भी; (१२) ज्ञान आठ (तीन अज्ञान के साथ ) : (१३) संयम सात (असंयम व संयमासंयम के साथ), संयम - असंयम-संयमासंयम का अभाव ( सिद्धों की अपेक्षा); (१४) दर्शन चार, (१५) लेश्या द्रव्य व भाव की अपेक्षा छह, अलेश्य का अभाव (१६) भव्यसिद्धिक व अभव्यसिद्धिक, न भव्यसिद्धिक न अभव्यसिद्धिकों का अभाव ; ( १७ ) सम्यक्त्व छह ( मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि व सासादन सम्यग्दृष्टि के साथ); (१८) संज्ञी व असंज्ञी, न संज्ञी न असंज्ञी का अभाव ; (१६) आहारी व अनाहारी, (२०) साकार उपयोग युक्त, अनाकार उपयोग युक्त, तथा युगपत् साकार-अनाकार उपयोग युक्त ।
१
इसे एक दृष्टि में इस प्रकार देखा जा सकता है—
पर्याप्त सामान्य ओघ आलाप
(१) गुणस्थान - मिथ्यादृष्टि आदि १४
(२) जीवसमास – एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त आदि ७
(३) पर्याप्ति - संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त ६, असंज्ञी पंचेन्द्रिय आदि पर्याप्त ५ तथा एकेन्द्रिय पर्याप्ति ४
(४) प्राण - संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त १०, असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त ६, चतुरिन्द्रिय प०८, त्री० प० ७, द्वी० प० ६, एकेन्द्रिय प० ४
(५) संज्ञा - आहार, भय, मैथुन व परिग्रह
(६) गति - चारों गतियाँ
(७) इन्द्रिय-- पाँचों इन्द्रियाँ
(८) काय - - छहों काय
(६) योग - औ० मिश्र, बै० मिश्र, आ० मिश्र व कार्मण के बिना ११
(१०) वेद - तीनों व अपगत वेद भी
(११) कषाय - चारों व अकषाय भी
(१२) ज्ञान - आठों ज्ञान
(१३) संयम - सामायिक, छेदो०, परि० वि०, सूक्ष्मसा०, यथाख्यात, संयतासंयत व
असंयत ।
(१४) दर्शन - ४ चक्षुदर्शनादि
(१५) लेश्या - ६ द्रव्यलेश्या व ६ भावलेश्या
(१६) भव्य - भव्य व अभव्य
(१७) सम्यक्त्व - क्षायिक, वेदक, औप०, सासादन, सम्यग्मिथ्यात्व व मिथ्यात्व
(१८) संज्ञी संज्ञी व असंज्ञी
(१६) आहार - आहारक व अनाहारक
(२०) उपयोग -- साकार, अनाकार, युगपत् साकार- अनाकार
१. धवला पु० २, पृ० ४२०-२१
Jain Education International
षट्खण्डागम पर टीकाएँ / ३८७
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
क