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आदि विकल्पों के आश्रय से मिथ्यादृष्टि राशि के प्रमाण को दिखाया है।' ___ इससे सिद्ध है कि आ० वीरसेन गणित के अधिकारी विद्वान् रहे हैं, क्योंकि गणितविषयक गम्भीर ज्ञान के बिना उक्त प्रकार से विशद प्ररूपणा करना सम्भव नहीं है। उन्होंने गणित से सम्बद्ध अनेक विषयों को स्पष्ट करते हुए प्रसंगानुसार जिन विविध करणसूत्रों व गाथाओं आदि को उद्धृत किया है उनकी अनुक्रमणिका यहाँ दी जाती है
धवला
क्रमांक
पृष्ठ
१२४
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८४
८८ ३५५ १६६ १७३
२०१
११. १२.
अवतरणांश अच्छेदनस्य राशेः अर्द्ध शून्यं रूपेषु गुणम् अवणयणरासिगुणिदो अवहारवढिरूवाणवअवहारविसेसेण य अवहारेणोवट्टिद आदि त्रिगुणं मूलादआवलियाए वग्गो इच्छं विरलिय दुगुणिय इच्छिदणिसेयभत्तो इट्ठसलागाखुत्तो उत्तरगुणिते तु धने उत्तरगुणिदं इच्छं उत्तरगुणिदं गच्छं उत्तरदलहयगच्छे एकोत्तरपदवृद्धो गच्छकदी मूलजुदा जगसेढीए वग्गो जत्थिच्छसि सेसाणं जे अहिया अवहारे जे ऊणा अवहारे णिक्खित्तु बिदियमेत्तं दो-दो रूवक्खेवं धणमठुत्तरगुणिदे
८७ १६७ ४७५
१३. १४.. १५. १६.
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१६३ २५४,२५८ ३५६ ४५८
१८. १६.
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२०.
४६
२१.
४५
२३.
४६०
१५०
१. धवला पु० ३, पृ० ४०-६६ (प्रकृत 'द्रव्यप्रमाणानुगम' के गणित भाग को आ० वीरसेन
द्वारा कितना स्पष्ट किया गया है व उस गणित का कितना महत्त्व रहा है. इसके लिए पु० ४ की प्रस्तावना पृ०१-२४ में 'मैथमेटिक्स ऑफ धवला' शीर्षक लेख द्रष्टव्य है। यह लेख लखनऊ विश्वविद्यालय के गणिताध्यापक डॉ. अवधेशनारायणसिंह के द्वारा लिखा गया है। उसका हिन्दी अनुवाद भी पु० ५ की प्रस्तावना में पृ० १-२८ पर प्रकाशित है।
षट्खण्डागम पर टोकाएँ | ३५३
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