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११. षट्खण्डागम और नन्दिसूत्र
नन्दिसूत्र को चूलिकासूत्र माना जाता है। उसके रचयिता आचार्य देवद्धि का समय विक्रम संवत् ५२३ के पूर्व अनुमानित है।' ____ इसमें सर्वप्रथम तीन गाथाओं के द्वारा भगवान् महावीर का गुणकीर्तन किया गया है। पश्चात् १४ (४-१७) गाथाओं में संघचक्र को नमस्कार करते हुए उसका गुणानुवाद किया गया है। अनन्तर चौबीस तीर्थंकरों (१८-१६) और भगवान् महावीर के ग्यारह गणधरों के नामों का उल्लेख (२०-२१) करते हुए वीर शासन का जयकार किया गया है (२२)। तत्पश्चात् इक्कीस (२३-४३) गाथाओं में सुधर्मादि दूष्यगणि पर्यन्त स्थविरों के स्मरणपूर्वक अन्य कालिकश्रुतानुयोगियों को प्रणाम करते हुए ज्ञान की प्ररूपणा करने की प्रतिज्ञा की गई है।
यहाँ यह स्मरणीय है कि इस स्थविरावलि में आर्य मंगु (आर्य मंच, गा० २८) और आर्य नागहस्ती (३०) के अनेक गुणों का उल्लेख करते हुए उनका स्मरण किया गया है। इन दोनों आचार्यप्रवरों को दिगम्बर सम्प्रदाय में भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
आगे वहाँ १४ प्रकार से श्रोताओं का निर्देश करते हुए शिका, अज्ञिका और दुर्विदग्धा के भेद से तीन प्रकार की परिषद् का उल्लेख है। (सू० ७, गा० ४४)
इस नन्दिसूत्र में जो ज्ञान की प्ररूपणा की गई है उसकी प्रस्तुत षट्खण्डागम में की गई ज्ञान की प्ररूपणा के साथ कहाँ कितनी समानता-असमानता है, इसका यहाँ विचार किया जाता है
१. षट्खण्डागम के पूर्वनिर्दिष्ट 'प्रकृति' अनुयोगद्वार में ज्ञानावरणीय की प्रकृतियों का निरूपण करते हुए वहाँ सर्वप्रथम ज्ञानावरणीय के इन पांच भेदों का निर्देश किया गया है---- आभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय, मनःपर्ययज्ञानावरणीय और केवलज्ञानावरणीय। __ नन्दिसूत्र में उक्त पांच ज्ञानावरणीय प्रकृतियों के द्वारा प्राव्रियमाण इन पांच ज्ञानों का निर्देश किया गया है-आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान।
१. महावीर जैन विद्यालय से प्रकाशित संस्करण की गुजराती प्रस्तावना, पृ० ३२-३३ २. धवला पु० २, पृ० २३२; पु० १५, पृ० ३२७ और पु० १६, पृ० ५१८ व ५२२ । जयधवला के प्रारम्भ में उन दोनों आचार्यों का उल्लेख इस प्रकार किया गया है --
गुणहरवयणविणिग्गयगाहाणत्थोऽवहारियो सव्वो। जेणज्जमखुणा सो सणागहत्थी वरं देऊ ।।७।। जो अज्जमखुसीसो अंतेवासी वि णागहत्थिस्स ।
सो वित्तिसुत्तकत्ता जइवसहो मे वरं देऊ ।।८।। __(विशेष जानकारी के लिए जयपुर, 'महावीर स्मारिका' (१९८३) में प्रकाशित 'आचार्य आर्यमंक्षु और नागहस्ती' शीर्षक लेख द्रष्टव्य है)। ३. ष० ख० सूत्र ५,५,२०-२१ (पु० १३) ४. नन्दिसूत्र ८
षट्खण्डागम की अन्य प्रन्थों से तुलना | २७७
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