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उसका 'तत्त्वार्थ सूत्र' यह भी सार्थक नाम है । सम्भवतः यह जैन सम्प्रदाय में सूत्र रूप से संस्कृत में रची गई आद्य कृति है ।
तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता आचार्य उमास्वाति के समक्ष सम्भवतः प्रस्तुत षट्खण्डागम रहा है और उन्होंने उसका उपयोग भी तत्त्वार्थसूत्र की रचना में किया है ।
यहाँ यह स्मरणीय है कि षट्खण्डागम यह एक कर्मप्रधान आगमग्रन्थ है, जो अविच्छिन्न आचार्य परम्परा से प्रवाहित श्रुत के आधार पर आगमिक पद्धति से रचा गया है । उसमें विविध अनुयोगद्वारों के आश्रय से कर्म की विभिन्न अवस्थाओं की प्ररूपणा की गई है ।
किन्तु तत्त्वार्थसूत्र, जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, मुमुक्षु जीवों को लक्ष्य करके मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से रचा गया है। इसलिए उसमें उन्हीं तत्त्वों की चर्चा की गई है जो उस मोक्ष की प्राप्ति में प्रयोजनीभूत हैं । इसी से इन दोनों ग्रन्थों की रचनाशैली में भेद होना स्वाभाविक है । फिर भी प्रसंगानुरूप कुछ प्रतिपाद्य विषयों की प्ररूपणा दोनों ग्रन्थों में समान देखी जाती है । यथा
१. तत्त्वार्थ सूत्र में सर्वप्रथम मोक्ष के मार्गस्वरूप सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र का निर्देश करते हुए सम्यग्दर्शन के विषयभूत सात तत्त्वों का उल्लेख किया गया है (१,१-४) । तत्पश्चात् उन तत्त्व विषयक संव्यवहार में प्रयोजनीभूत नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों का निर्देश किया गया है (१-५) 1
षट्खण्डागम में प्रायः सर्वत्र ही प्रकृत विषय का प्रसंगानुरूप बोध कराने के लिए इन चार निक्षेपों की योजना की गई है । '
२. तत्त्वार्थ सूत्र में आगे उक्त सात तत्त्वों विषयक समीचीन बोध के कारणभूत प्रमाण, नय व निर्देश - स्वामित्व आदि के साथ सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व इन आठ अधिकारों का उल्लेख किया गया है ( १, ६-८ ) ।
० ख० में मंगल के पश्चात् सर्वप्रथम जीवसमासों - जीवों का जहाँ संक्षेप किया जाता है उन गुणस्थानों की प्ररूपणा में प्रयोजनीभूत गति इन्द्रियादि चौदह मार्गणाओं का ज्ञातव्य स्वरूप से नामोल्लेख करते हुए उन्हीं जीवसमासों की प्ररूपणा में उपयोगी उपर्युक्त सत् ( सत्प्ररूपणा), संख्या ( द्रव्यप्रमाणानुगम) व क्षेत्र आदि आठ अनुयोगद्वारों को ज्ञातव्य कहा गया है (१, २-७) तथा आगे जीवस्थान नामक प्रथम खण्ड में यथाक्रम से उन्हीं आठ अनुयोग द्वारों के आश्रय से जीवस्थानों की विस्तारपूर्वक प्ररूपणा की गई है। *
विशेष इतना है कि ष० ख० में जहाँ आगम परम्परा के अनुसार उक्त आठ अनुयोगद्वारों का उल्लेख सत्प्ररूपणा व द्रव्यप्रमाणानुगम आदि जैसे शब्दों के द्वारा किया गया है वहाँ संस्कृत भाषा में विरचित तत्त्वार्थसूत्र में उनका उल्लेख सत्, संख्या, क्षेत्र आदि नामों से किया गया है ।
यह भी यहाँ विशेष स्मरणीय है कि तत्त्वार्थसूत्र यह एक अतिशय संक्षिप्त सूत्र ग्रन्थ है,
१. सूत्र ४,१,४६-६५ व ७३-७४ ( पु० ६) तथा सूत्र ४, २, १, २-३ ( पु० १० ); ५,३,३-४; ५,४,३-४ व ५,५, ३-४ ( पु० १३ ); ५, ६, २ - १४ आदि (पु० १४ ) ।
२. सत्प्ररूपणा पु० १ २, द्रव्यप्रमाणानुगम पु० ३, क्षेत्रानुगमादि पु० ३ अनुयोगद्वार पु० ४, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व पु० ५ ।
१६२ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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