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विषयक प्ररूपणा विस्तार से की गई है, जो अभिप्राय में मूलाचार की उस प्ररूपणा कुछ समान है ।'
उदाहरण के रूप में दोनों का कुछ मिलान इस प्रकार किया जा सकता हैट्टिदाय संता रइया तमतमादु पुढवीदो |
ण लहंति माणुसतं तिरिक्खजोणीमुवणमंति ।। मूलाचार १२, ११४ छट्टोदो पुढवीदो उव्वट्टिदा अणंतरभवम्हि |
भज्जा माणुसलंभे संजमलंभेण दु विहीणा । —मूलाचार १२,११६ भी इसी अभिप्राय को देखिए
ष० ख०
"अधो सत्तमा पुढवीए णेरइया णिग्यादो णेरइया उव्वट्टिद- समाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? एक म्हि तिरिक्खगदिमागच्छति । तिरिक्खेसु उववण्णल्लया छण्णो उप्पाएंति आभिणि बोहियणाणं णो उप्पाएंति, सुदणाणं णो उप्पाएंति, ओहिणाणं णो उप्पाएंति, सम्मामिच्छत्तंणो उप्पाएंति, सम्मत्तं णो उप्पाएंति, संजमासंजमं णो उप्पाएंति ।
से
छुट्टी पुढवीए रइया णिरयादो णेरइया उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छति ? दुवे गदीओ आगच्छंति-तिरिक्खर्गादिं मणुस्सर्गादि चेव । तिरिक्ख मणुस्सेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा मणुस्सा केई छ उपाएंति – केई आभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति, केई सुदणाणमुप्पा एंति, केई मोहिणाणमुप्पाएंति, केई सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केई सम्मत्तमुप्पाएंति केई संजमासंजममुप्पाएंति । ष० ख० सूत्र १, ६ - ६, २०३- ८ ( पु० ६, पृ० ४८.४-६६ )
मूलाचार में यह प्ररूपणा संक्षेप में की गई है, पर है वह सर्वांगपूर्ण । कौन जीव कहाँ से आते हैं और कहाँ जाते हैं, इत्यादि का विचार यहाँ बहुत स्पष्टता से किया गया है । जैसे
बहुत
सब अपर्याप्त, सूक्ष्मकाय, सब तेजकाय व वायुकाय तथा असंज्ञी ये सब जीव मनुष्य और तिर्यंचों में से ही आते हैं— उनमें नारकी, देव, भोगभूमिज और भोगभूमिप्रतिभागज जीव आकर उत्पन्न नहीं होते। पृथिवीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक और सब विकलेन्द्रिय ये सब मनुष्य और तिर्यंचों में जाकर उत्पन्न होते हैं। सभी तेजकाय और सभी वायुकाय जीव अनन्तर भव में नियम से मनुष्य पर्याय को नहीं प्राप्त करते हैं । प्रत्येकशरीर वनस्पति तथा बादर व पर्याप्त पृथिवीकायिक एवं जलकायिक जीव मनुष्य, तिर्यंच और देवों में से ही आते हैं ।
संज्ञी पर्याप्त तिर्यंच जीव मनुष्य, तियंच, देव और नारकी इनमें उत्पन्न तो होते हैं, पर उन सभी में वे उत्पन्न नहीं होते - यदि नारकियों में वे उत्पन्न होते हैं तो केवल प्रथम पृथिवी के नारकियों में उत्पन्न होते हैं; यदि देवों में उत्पन्न होते हैं तो भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में ही उत्पन्न होते हैं; यदि मनुष्यों और तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं तो भोंगभूमिज, भोगभूमिप्रतिभाग तथा अन्य भी पुण्यशाली मनुष्य - तिर्यंचों में उत्पन्न न होकर शेष मनुष्य-तिर्यंचों में ही उत्पन्न होते हैं । 2
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१. सातवीं व छठी आदि पृथिवियों से निकले हुए नारकी कहाँ जाते हैं, तथा वहाँ जाकर वे क्या प्राप्त करते हैं व क्या नहीं प्राप्त करते हैं, इसके लिए देखिए सूत्र १, ६-६, २०३-२० ( पु० ६) ।
२. मूलाचार १२,१२३-२६
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षट्खण्डागम की अन्य ग्रन्थों से तुलना / १५५
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