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होते हैं। तीन शरीरवाले औदारिक, तेजस और कार्मण इन तीन शरीरों से अथवा वैक्रियिक तैजस और कार्मण इन तीन शरीरों से सहित होते हैं। चार शरीर वाले औदारिक, वैक्रियिक, तैजस और कार्मण इन चार शरीरों से अथवा औदारिक, आहारक, तेजस और कार्मण इन चार शरीरों से युक्त होते हैं। जिनके शरीर नहीं है वे मुक्ति को प्राप्त जीव अशरीर हैं।
इसी पद्धति से आगे आदेश की अपेक्षा क्रम से गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओं में भी दो, तीन और चार शरीरवाले तथा शरीर से रहित जीवों का विचार किया गया है (१३२६७)। इस प्रकार से सत्प्ररूपणा समाप्त हुई है। ___इस प्रकार सूत्र-निर्दिष्ट उपर्युक्त आठ अनुयोगद्वारों में से सूत्रकार ने एक सत्प्ररूपणा अनुयोगद्वार की प्ररूपणा की है । आगे द्रव्यप्रमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम और भावानुगम इन छह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा न करके उन्होंने अन्तिम अनुयोगद्वार अल्पबहुत्वानुगम की प्ररूपणा प्रारम्भ कर दी है। ___ इस विषय में धवलाकार ने कहा है कि यह अनुयोगद्वार (सत्प्ररूपणा) शेष छह अनुयोगद्वारों का आश्रयभूत है, इसलिए उन अनुयोगद्वारों को प्ररूपणा यहाँ की जाती है। यह कहते हुए उन्होंने धवला में उन द्रव्यप्रमाणानुगम आदि छह अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा स्वयं ही है।'
उस अल्पबहुत्व की प्ररूपणा करते हुए ओघ और आदेश की अपेक्षा उसकी प्ररूपणा दो प्रकार से है, यह कहकर सूत्रकार द्वारा प्रथमतः ओघ की अपेक्षा उसकी प्ररूपणा की गई है। यथा-ओघ की अपेक्षा चार शरीरवाले सबसे स्तोक, शरीररहित उनसे अनन्तगुणे, दो शरीर वाले उनसे अनन्तगुणे और तीन शरीरवाले जीव उनसे अनन्तगुणे हैं (१६८-७२)। ___ आगे इसी पद्धति से आदेश की अपेक्षा भी गति-इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओं में उस अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गई है (१७२-२३५)। ___इस प्रकार इस अल्पबहुत्व अनुयोगद्वार की प्ररूपणा करके प्रकृत शरीरीशरीर प्ररूपणा अनुयोगद्वार को समाप्त किया गया है । २. शरीरप्ररूपणा __इसमें छह अनुयोगद्वार हैं--नामनिरुक्ति, प्रदेशप्रमाणानुगम, निषेकप्ररूपणा, गुणकार, पदमीमांसा और अल्पबहुत्व (२३६)।
१. नामनिरुक्ति के आश्रय से औदारिक आदि पाँच शरीरों के वाचक शब्दों के निरुक्तयर्थ को प्रकट किया गया है (२३७-४१)। जैसे___'उरालमिदि पोरालियं' यह ओरालिय (औदारिक) शब्द की निरुक्ति है। उराल या उदार शब्द का अर्थ स्थूल होता है । 'इति' शब्द के हेतु या विवक्षा में घटित होने से 'उराल' को ही 'ओराल (औदारिक)' कहा गया है। अभिप्राय यह है कि उदार या स्थूल शरीर का नाम औदारिक है। यह स्थूलता अवगाहना की अपेक्षा है । अन्य शरीरों की अपेक्षा औदारिक शरीर की अवगाहना अधिक है, जो महामत्स्य के पाँच सौ योजन विस्तार और एक हजार योजन आयाम के रूप में उपलब्ध होती है ।
१. धवला पु० १४, पृ० २४८-३०१
२२८ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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