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कामभावनाष्टकम् पालय पालय रे पालय मां जिनधर्म ! मंगलकमलाकेलिनिकेतन ,
करुणाकेतन धीर । शिवसुखसाधन भवभयबाधन , ..
जगदाधार गम्भीर, पालय० ॥ १३२ ॥ सिञ्चति पयसा जलधरपटली ,
भूतलममृतमयेन । सूर्याचन्द्रमसावुदयेते ,
तव महिमातिशयेन, पालय० ॥ १३३ ॥ अर्थ-हे जिनधर्म ! आप मेरा पालन करो, पालन करो, पालन करो।
हे मंगललक्ष्मी की क्रीड़ा के स्थान रूप ! हे करुणा की ध्वजा स्वरूप! हे धैर्यवान् ! हे शिवसुख के साधन ! हे भवभय के बाधक ! हे जगत् के आधारभूत !
शान्त सुधारस विवेचन-१८