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विवेचन जिनधर्म की विशेषताएँ
जिनेश्वर का धर्म अनेक विशेषताओं से युक्त है
(१) सर्वतंत्र नवनीत-तंत्र अर्थात् शासन-व्यवस्था । दुनिया में धर्म के नाम पर अनेक तंत्र हैं। सभी तंत्रों में जिनशासन नवनीत समान है। जिस प्रकार दूध का सार मक्खन है, उसी प्रकार विश्व में सभी धर्मों में सारभूत जिनेश्वर का धर्म ही है।
(२) सनातन-जिनधर्म की कोई आदि नहीं है। अनादिकाल से जिनधर्म चला आ रहा है और अनन्तकाल तक इसका अस्तित्व रहेगा। यह जिनशासन त्रिकाल-अबाधित शासन है। दुनिया की कोई शक्ति या दर्शन इसे कुठित नहीं कर सकता है ।
(३) सिद्धिसदन सोपान-जिस प्रकार मंजिल पर चढ़ने के लिए सीढ़ियों की आवश्यकता रहती है, इसी प्रकार मुक्ति-मंजिल पर पहुँचने के लिए चौदह गुणस्थानक चौदह सीढ़ियों का काम करते हैं। जीवात्मा ज्यों-ज्यों जिनधर्म का प्राश्रय करती है, त्यों-त्यों वह उत्तरोत्तर गुणस्थान पर आरूढ़ बनती जाती है और अन्त में मोक्षपद को प्राप्त करती है ।
(४) शान्त सुधारस पान-यह जिनधर्म प्रशान्त अमृत रस के पान तुल्य है। अमृत के पान से प्रात्मा भी अमृत बनती है। यह जिनधर्म आत्मा के लिए शान्तरस लेकर आता है। इस प्रशमरस का पान करने से आत्मा भी शाश्वत अमृत स्वरूप बन जाती है।
उपर्युक्त विशेषणों से युक्त हे जिनधर्म ! आप हमारा पालन करो, रक्षण करो।
शान्त सुधारस विवेचन-३४