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मैती भावना सद्धर्मध्यानसंधान-हेतवः श्रीजिनेश्वरः । मैत्रीप्रभृतयः प्रोक्ताश्चतस्रो भावनाः पराः ॥ १७१ ॥ मैत्री-प्रमोदकारुण्य-माध्यस्थ्यानि नियोजयेत् । धर्मध्यानमुपस्कर्तु, तद्धि तस्य रसायनम् ॥ १७२॥
(अनुष्टुप) अर्थ-सद्धर्म-ध्यान में अच्छी तरह से जुड़ने के लिए श्री जिनेश्वरदेवों ने मैत्री प्रमुख चार श्रेष्ठ भावनाएं कही हैं ।। १७१ ॥
अर्थ-मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ्य ये चार भावनाएं धर्मध्यान को स्थिर करने के लिए सर्वदा सेवन करने योग्य जरूरी हैं, क्योंकि यह वास्तविक रसायन है ।। १७२ ॥
विवेचन धर्मध्यान का रसायन : चार भावनाएँ
- अनन्त ज्ञानी सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकर भगवन्तों ने आत्महित के लिए अनित्यादि बारह भावनाएँ और मैत्री आदि चार भावनाएँ बतलाई हैं।
शान्त सुधारस विवेचन-१०५