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ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती हैं, त्यों-त्यों नवीन दुःखों व आपत्तियों का ही सर्जन करती हैं।
अध्यात्म सुख का मार्ग है। भौतिकवाद दु:ख का मार्ग है।
आज वर्तमान युग में मनुष्य अध्यात्ममार्ग से दूर हटता जा रहा है और भौतिकवाद में दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ता जा रहा है, इसका परिणाम हमारे सामने है। दिन-प्रतिदिन हमारे सामने नई-नई समस्याएँ खड़ी होती जा रही हैं।
आत्मा अपने दुःख का गर्त भी स्वयं ही खोद रही है और दिन-प्रतिदिन वह नीचे ही जा रही है, क्योंकि उसके पास वासनानियंत्रण का कोई साधन नहीं है। वासनाओं की प्रबलता के कारण वह अधोगमन करती जा रही है ।
____ व्यसन-सेवन एक ऐसा गर्त है, जिसमें फंसने के बाद प्रात्मा का उसमें से बाहर निकलना अत्यन्त कठिन हो जाता है।
उदाहरणार्थ-शराब एक ऐसा व्यसन है कि प्रारम्भ में तो व्यक्ति को लगता है कि 'मैं शराब पीता हूँ' परन्तु समय बीतने पर व्यक्ति शराब का इतना अधिक गुलाम हो जाता है कि 'शराब ही उसे पीने लग जाती है।'
- यही स्थिति अन्य व्यसनों की भी है। व्यसन का गुलाम व्यक्ति गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने में असमर्थ हो जाता है और उसका पतन निश्चित हो जाता है।
शान्त सुधारस विवेचन-१९४