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0 प्रकाशन-परिचय *
'नमस्कार महामंत्र के सूक्ष्म तत्त्वचिन्तक, अध्यात्मयोगी निस्पृहशिरोमणि पंन्यासप्रवर
श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्य श्री के तात्त्विक और सात्त्विक हिन्दी-साहित्य का
* सरल परिचय * १. महामंत्र की अनुप्रेक्षा-मूल गुजराती भाषा में प्रालेखित इस पुस्तक की गुजराती भाषा में तीन आवृत्तियाँ प्रकट हो चुकी हैं। हिन्दीभाषा में भी दो प्रावृत्तियाँ प्रकट हुई हैं।
'नमस्कार महामंत्र' के अगाध चिन्तन-सागर में अवगाहन करने के बाद पूज्यपादश्री को जो चिन्तन-मोती प्राप्त हुए""उन्हीं चिन्तन-मोतियों की माला का दूसरा नाम 'महामंत्र की अनुप्रेक्षा' है। 'नमस्कार-महामंत्र' शब्द से छोटा है, परन्तु वह अर्थ का महासागर है।
तत्त्व-जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक अवश्य पठनीय और मननीय है।
मूल्य : बीस रुपये
२. परमात्म-दर्शन-पूज्य की पूजा करने से अपनी प्रात्मा भी पूज्य/पवित्र बनती है। परमेष्ठी के प्रथम पद पर विराजमान तारक तीर्थंकर परमात्मा का स्वरूप क्या है ? -उनका हम पर कितना अमीम उपकार है ? उनकी पूजा से क्या फायदे हैं ? -इत्यादि अनेकविध विषयों पर मार्मिक विवेचन इस पुस्तक में किया गया है।
मूल्य : पाँच रुपये
शान्त सुधारस विवेचन-२४५