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१३. युवानो! जागो--पुस्तक में लेखक मुनिश्री ने आज के गुमराह युवा वर्ग को जागृत कर सन्मार्ग पर चलने की सुन्दर प्रेरणा दी है। आज की युवा पीढ़ी पान-पराग, धूम्रपान, ह्विस्की, ब्रांडी, एल. एस. डी., ब्राउन सुगर, अंडे आदि के व्यसन की गुलाम बनती जा रही है। व्यसनमुक्त युवान ही अपने जीवन को सन्मार्ग की ओर आगे बढ़ा सकता है । प्रस्तुत पुस्तक का घर-घर में प्रचार व प्रसार होना अत्यन्त जरूरी है।
१४. शान्त सुधारस (हिन्दी विवेचन)I -महोपाध्याय श्रीमद् विनयविजयजी म. के द्वारा संस्कृत भाषा में विरचित 'शान्त सुधारस' के समस्त पदों का मुनिश्री ने बहुत ही सुन्दर विवेचन प्रस्तुत किया है। जीवन में वैराग्य की अभिवद्धि के लिए इस प्रकार के ग्रन्थों का स्वाध्याय अत्यन्त ही अनिवार्य है। इस अनमोल ग्रन्थ का हिन्दी दिवेचन हिन्दीभाषी वर्ग के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा।
१५. शान्त सुधारस-माग I[--महोपाध्याय श्रीमद् विनय विजयजी विरचित अनित्य आदि बारह और मैत्री आ द चार भावनात्रों में से प्रथम ६ भावनात्रों पर विस्तृत हिन्दी विवेचन प्रथम भाग में है और शेष ७ भावनाओं पर हृदयंगम एवं रोचक शैली में हिन्दी विवेचन इस द्वितीय भाग में प्रस्तुत है। जीवन में आत्मिक शान्ति चित्त प्रसन्नता और वैराग्य वृद्धि के लिए इस विवेचन का सांगोपांग अध्ययन अत्यावश्यक है।
१६. रिमझिम - रिमझिम अमृत बरसे-अध्यात्मयोगी पूज्यपाद पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्य श्री के नाम-काम से भला कौन अपरिचित है ? उनके विराट् व्यक्तित्व और अद्भुत कृतित्व को प्रगट करने वाली इस श्रद्धांजलि-संस्मरणिका का विद्वद्वर्य मुनि श्री रत्नसेन विजयजी ने अत्यंत ही कुशलतापूर्वक संपादन किया है। इस संस्मरणिका के स्वाध्याय से जीवन में अध्यात्म की नई दिशा प्राप्त हुए बिना नहीं रहेगी। अध्यात्मरसिक पाठकों के लिए इसका अध्ययन अत्यावश्यक है।
शान्त सुधारस विवेचन-२५२