________________
५. श्रानन्दघन चौबीसी विवेचना - योगिराज ग्रानन्दघनजी के नाम से भला कौन अपरिचित होगा ? अध्यात्म की मस्ती में लीन बने श्रानन्दघनजी म. द्वारा विरचित चौबीस स्तवनों पर प्रस्तुत कृति में सुन्दर विवेचन प्रस्तुत किया गया है, जो अवश्य मननीय है । भाषाशैली रोचक व सुगम है ।
६. कर्मन् की गत न्यारी- एक शीलवती सन्नारी के पवित्र जीवन पर प्रकाश डालने वाली प्रस्तुत कृति अवश्य पठनीय है। कर्म- संयोग से जीवन में आने वाली आपत्तियों को समतापूर्वक सहन करने वाली महासती मलयसुन्दरी का जीवन अनेकविध प्रेरणामों से भरा-पूरा है ।
७. मानवता तब महक उठेगी - जीवन में आत्मोत्थान की साधना में आगे बढ़ने के लिए सर्वप्रथम 'मानवता' की नींव को मजबूत करना अनिवार्य है । नींव ही यदि कमजोर हो तो इमारत का निर्माण कैसे हो सकता है ? प्रस्तुत कृति में जीवन में 'मानवता' के अभ्युत्थान के लिए उपयोगी गुणों का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया गया है । इसी वर्ष प्रकाशित प्रस्तुत कृति के संदर्भ में अनेक अभिप्राय प्राप्त हुए हैं ।
८. मानवता के दीप जलाएँ - 'मानवता तब महक उठेगी' पुस्तक की ही अगली कड़ी यह पुस्तक है । इस पुस्तक में मानवता के विकास में उपयोगी १४ गुणों का मार्मिक वर्णन है । पुस्तक में दो खण्ड हैं । प्रथम खण्ड में गुणवर्णन और द्वितीय खण्ड में प्रेरक प्रसंग हैं । युवा जगत् के लिए यह पुस्तक प्रेरणा का महान् स्रोत है ।
६. मालोचना सूत्र विवेचना - विद्वद्वर्य लेखक मुनिश्री ने नवकार से लेकर 'वेयावच्चगराणं' तक के सूत्रों का विस्तृत विवेचन 'सामायिक सूत्र विवेचना' और 'चैत्यवंदन सूत्र विवेचना' पुस्तक में किया था। उसके बाद के सूत्रों का ( वंदित्तु के पूर्व तक ) विवेचन प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है | अठारह पापस्थानक का लाक्षणिक शैली में विस्तृत विवेचन अवश्य ही पढ़ने योग्य है ।
शान्त सुधारस विवेचन- २५०