________________
ग्रंथ एवं ग्रंथकार का परिचय
महोपाध्याय श्रीमद विनय विजय जी द्वारा विरचित “शान्त सुधारस" ग्रंथ एक सुमधुर काव्यकृति है। इस काव्य ग्रंथ में अनित्य आदि बारह और मैत्री | आदि चार भावनाओं का गेयात्मक रूप में बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है।
ग्रंथकार महर्षि प्रकांड विद्वान् और प्रतिभासम्पन्न थे। इस ग्रंथ रचना के साथ उन्होंने कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, लोकप्रकाश, हैम लघु प्रक्रिया, नयकर्णिका, जिननामसहस्र स्तोत्र जैसी संस्कृत कृतियों के साथ पुण्यप्रकाश स्तवन, श्रीपालराजा का रास इत्यादि अनेक गुर्जर साहित्य की भी रचना की है। प्रस्तुत काव्यकृति में भाषा के लालित्य के साथ-साथ भावों की ऊर्मियाँ उछलती हुई नजर आती हैं।
आइये ! रसाधिराज शांतरस के इण महासागर में डुबकी लगाकर अपनी आत्मा के कर्ममल का प्रक्षालन करें और आत्मा की निर्मलता को प्राप्त करें।
- मुनि रत्नसेन विजय