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अर्थ-अन्त में अवश्य हित करने वाले विनय के उपलक्षण से (विनय विजयजी म. द्वारा) कहा गया एक वचन तुम सुनो और सैकड़ों प्रकार से सुकृत तथा अनुपम के जोड़ने वाले शान्त सुधारस का पान करो ।। २१६ ।।
विवेचन शान्त सुधारस का पान करो
। अन्त में ग्रन्थकार महर्षि फरमाते हैं कि परिणाम में एकान्त हितकर ऐसे मेरे एक वचन को सुनो। सैकड़ों सुकृतों के साथ अपनी आत्मा को जोड़ने वाले 'शान्त सुधारस' का बार बार प्रमीपान करो। ___ ग्रन्थकार ने 'विनय' शब्द से अपना नाम निर्देश भी किया है और उसका दूसरा अर्थ 'विशेष प्रकार से नय को जानने वाले' भी होता है।
___ यह करुणा भावना 'शान्त सुधारस' का ही एक अंग है । प्रतः अपनी आत्मा को पुष्ट करने के लिए बारंबार इस भावना को भावित करो। इस प्रकार करुणा आदि भावनाओं के भावन से प्रात्मा पुण्यानुबन्धी पुण्य का अर्जन करती है, यह पुण्य आत्मा को अनेकविध सुकृतों के साथ जोड़ देता है।
'शान्त सुधारस' रूप इस ग्रन्थ के बारंबार स्वाध्याय से प्रात्मा शान्त-प्रशान्त बनती है।
शान्त सुधारस विवेचन-२१५