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अर्थ - तीर्थंकर परमात्मा असाधारण शक्ति सम्पन्न होते हैं, फिर भी क्या वे बलात्कार से किसी के पास धर्म कराते हैं ? अर्थात् नहीं कराते हैं । किंतु वे शुद्ध धर्म का उपदेश अवश्य देते हैं, जिसका पालन कर भव्य प्राणी भवसागर तैर जाते हैं ।। २२० ।।
विवेचन
धर्म का ग्रहण स्वैच्छिक होता है
अरिहन्त परमात्मा अनन्तशक्ति के तेजस्वी पुञ्ज होते हैं । उनके पास अनन्त शक्तियाँ होती हैं । फिर भी वे किसी को धर्म स्वीकार करने के लिए जोर जबरदस्ती नहीं करते हैं। उनके हृदय में समस्त जीवों के प्रति करुणा होते हुए भी वे बलात्कार से किसी को धर्म नहीं देते हैं, बल्कि सहज भाव से शुद्ध धर्म का उपदेश देते हैं । इस प्रकार के धर्मोपदेश में न तो उनके हृदय में किसी प्रकार की महत्त्वाकांक्षा होती है, न ही उन्हें अपने तीर्थ का राग ।
उनका विहार भी सहज भाव से होता है, उन्हें न द्रव्य का बन्धन है और न क्षेत्र का, उन्हें न काल का बन्धन है और न ही भाव का । वे सहज भाव से विचरते हैं... सहज भाव से धर्मोपदेश देते हैं और सहज भाव से जीते हैं ।
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इस प्रकार उनके साहजिक और विशुद्ध उपदेश का भावपूर्वक श्रवरण करने से अनेक भव्यात्मानों को प्रतिबोध हो जाता है और वे संसार का त्याग कर अपना जीवन समर्पित कर देती हैं।
शान्त सुधारस विवेचन- २२४