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उन्मार्गगामी को मार्ग बतलाना तेरा कर्तव्य है। उन्मार्गगामी को मार्ग दिखलाकर तूने अपने कर्तव्य का पालन कर लिया है. अब तू उस पर व्यर्थ ही गुस्सा क्यों करता है ? इस प्रकार गुस्सा करने से क्या वह सुधर जाएगा? शायद तू शान्त रहेगा तो भविष्य में उचित समय पर तू उसे सुधार भी सकेगा." परन्तु आज और अब घड़ी ही उसे सुधारने की बात करना व्यर्थ ही है।
..."वह न सुधरे " तो उसकी भवितव्यता।' तू गुस्सा करके अपनी शान्ति को नष्ट मत कर । क्रोध करने से मन चंचल अस्थिर बनता है और अस्थिर मन अशान्त हो जाता है।
हे प्रात्मन् ! तू अपने मित्रजन को, स्वजन को, पुत्र प्रादि को सुधारना चाहता है और इसके लिए तू बहुत मेहनत भी करता है"परन्तु संयोगवश तुझे सफलता न मिले, फिर भी तुझे सन्ताप करने की प्रावश्यकता नहीं है। ऐसी परिस्थिति में भी तुझे अपनी स्थिरता बनाए रखना है। सूत्रमपास्य जडा - भासन्ते ,
...केचन मतमुत्सूत्रं रे। किं कुर्मस्ते परिहतपयसो , ___ यदि पीयन्ते मूत्रं रे ॥ अनुभव० २२५ ॥
.. अर्थ-कई जड़ बुद्धि वाले शास्त्र-वचन का त्याग कर मिथ्या (शास्त्रविरुद्ध) भाषण करते हैं, वे मूढ़ जीव निर्मल जल का. त्याग कर मूत्र का पान करते हैं, तो इसमें हम क्या करें? ॥ २२५ ॥
शान्त सुधारस विवेचन-२३३