Book Title: Shant Sudharas Part 02
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 250
________________ होंगे''उसे आत्मकल्याण की हितकर बातें अच्छी नहीं लगेंगी । नरकगति के अनुसार उस आत्मा के अशुभ परिणाम हो जायेंगे - वह आत्मा अशुभ विचारों में लीन हो जाएगी । उसे अच्छी बातें भी कड़वी लगेंगी । में समर्थ नहीं है । हर आत्मा अपनी भवितव्यता के अनुसार ही इस संसार में गमनागमन करती है । यदि उस आत्मा की भवितव्यता खराब है यदि वह आत्मा दीर्घसंसारी है तो उसे तुम्हारी अच्छी बात भी अच्छी नहीं लगेगी परन्तु इतने मात्र से तुझे निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि तुझे इस बात का पता है कि जो भवितव्यता- भविष्य में होने वाली घटना होती है, उसे किसी भी प्रकार से टाला नहीं जा सकता है । यावत् तीर्थंकर परमात्मा भी किसी की भवितव्यता को बदलने तो फिर अपनी क्या हैसियत है ? कई बार हम देखते हैं कि किसो व्यक्ति ने जोवन भर धर्म को आराधना को हो परन्तु उस आत्मा ने दुर्गति के आयुष्य का बन्ध कर लिया हो तो उस आत्मा को अन्तिम समय में शायद धर्म की बात अच्छी न भी लगे, उसे समाधिदायक सूत्रों का श्रवण पसन्द न भी पड़े, धर्मीजन के जीवन में इस प्रकार के विपर्यास । विपरीत भवों को देखकर भी हे आत्मन् ! तू खेद मत कर । क्योंकि सबकी अपनी-अपनी भवितव्यता निश्चित है, उसी के अनुसार उनके परिणाम होते हैं। हृदयंगमसमतां, मायाजालं संवृणु वृथा वहसि पुद्गल - परवशतापरिमितकालं मायुः रमय हृदा रे । , रे ।। अनुभव० २२७ ॥ शान्त सुधारस विवेचन- २३६

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